Rakesh V Jain   (TheHiddenProwess)
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Joined 19 January 2019


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Joined 19 January 2019
6 APR 2023 AT 7:56

बात जब आई,
अपना हक जताने की।
आरज़ू थी मेरी,
एक घर बनाने की।
चाहत की जहां ने,
जिसे जलाने की।
सुनी ना मैंने,
फिर भी एक ज़माने की।
आदत थी उनकी,
सदा मुझे रुलाने की।
हिम्मत थी,
मेरी सदा मुस्कुराने की।
ना कोशिश की,
मैंने कभी उन्हें मनाने की।
ना जुर्रत की,
उन्होंने अपना हाथ बढ़ाने की।
बात जब आई,
अपना हक जताने की।

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5 APR 2023 AT 23:36

हालात अपने,
मैं तेरे लिए ही सुधारूँ।
हर जीत तेरे लिए,
मैं हंसते-हंसते हारूँ।
मुस्कुराहट पर तेरी,
मैं खुद को ही वारूँ।
तुझ मैं खोकर,
मैं तुझे ही पुकारूँ।
उम्र का हर पड़ाव,
मैं तेरे साथ ही गुज़ारूँ।
हालात अपने,
मैं तेरे लिए ही सुधारूँ।

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5 APR 2023 AT 4:04

कुछ यूं तुम्हारे
मैं जज़्बात समझ जाऊँ।
तुम कुछ ना कहो तो भी
मैं हालात समझ जाऊँ।
साथ तुम्हारा मुश्किलों में
मैं यूं निभाऊँ।
आंसू हो तुम्हारी आंखों में तो भी
मैं तुम्हें हंसाऊँ।
मुस्कुराहट से तुम्हारी ज़िंदगी
मैं अपनी सजाऊँ।
जुल्फ़ों में तुम्हारी गजरा
मैं अपनी मोहब्बत का लगाऊँ।
ज़िंदगी तुम्हारी जिससे
मैं हरदम महकाऊँ।
कुछ यूं तुम्हारे
मैं जज़्बात समझ जाऊँ।

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31 MAR 2023 AT 0:04

ढूंढा कई दफा मैंने तुझ में भी खुद को
हर दफा पर तुझ में फ़कत खुदा ही मिला!

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30 MAR 2023 AT 23:15

दिनभर के बाद जब शाम आती है
मोहब्बत मुझे तुझ पर सर-ए-आम आती है!

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8 MAR 2023 AT 20:53

माना गुज़र रही हो तुम एक बुरे दौर से
क्या थाम लूं मैं तुम्हारा हाथ दूसरे ओर से?

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6 MAR 2023 AT 5:10

खुद से एक जंग मैं लड़ रहा हूं,
बन कर सूर्य तभी मैं चढ़ रहा हूं।

नाकामयाबी मिले या मिले कामयाबी,
जिम्मेदारी खुद पर सारी मैं मढ़ रहा हूं।

पर्वतों से ऊंचा और समंदर से गहरा,
और मंजिलों से आगे मैं बढ़ रहा हूं।

अपनों का है साथ और दुनिया है खिलाफ,
इतिहास कुछ ऐसा ही मैं गढ़ रहा हूं।

मेहनत के सिवा ना हाथ में है कुछ,
किस्मत का लिखा पर अब मैं पढ़ रहा हूं।

खुद से एक जंग मैं लड़ रहा हूं,
बन कर सूर्य तभी मैं चढ़ रहा हूं।

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28 FEB 2023 AT 21:58

चलो हम तुम्हें अपना मुकाम़ बनाते हैं
और शायरियों के विराम पर अब विराम लगाते हैं!

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7 SEP 2022 AT 0:18

हम बिखरे तो हम निखरे
तुम बिखरे तो सब बिखरे!

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29 AUG 2022 AT 22:26

कर दूंगा राख किसी रोज़ ये दुनिया तेरी
ये तेरा ख़त तो नहीं कि जला भी ना पाऊं!

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