स्वर्णिम विजयी वर्ष
ये यादें हैं उन वीरों की जो यादों में बसे हुए हैं
वतन की रखवाली में जो वीर शहीद हुए
जन जन की यादों में यूँ बसे हुए हैं वीर हमारे
सोये नहीं वे रातों को आन बचाने तिरंगे की
शिवाजी महाराज के जो चलते थे उसुलो पर
हार ना मानी मरते दम तक धूल चटाई दुश्मनों को
आओ याद करे वो पल उन वीर शहीदों की उस गाथा का
नमन करे उन वीरों को जो बसे हुए हैं हर जन के दिलो में
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End of story
I had never thought that my story would end like this, suddenly time took a turn and everything got ruined. How easily he told me to leave me alone forever. We too have decided to kill our own happiness for the sake of his happiness.
really sad today😞😞-
तुम दिल में ना झाँक सके
गहराई को ना आंक सके
चले गए हैं वो यूँ ही कुछ दूर
बिना बताये चुपके से अब
जाते हुए भी वो हमारे कभी
मेरे प्यार को पहचान ना सके
जज़्बात को ना जान सके
एक बार ना मुड़कर देखा
छोड़ गए अकेला यूँ हमको
एक बार भी वो मेरे दिल में
सच्चाई से दिल में झांक ना सके-
तुम दिल में ना झाँक सके
गहराई को ना आंक सके
चले गए हैं वो यूँ ही कुछ दूर
बिना बताये चुपके से अब
जाते हुए भी वो हमारे कभी
मेरे प्यार को पहचान ना सके
जज़्बात को ना जान सके
एक बार ना मुड़कर देखा
छोड़ गए अकेला यूँ हमको
एक बार भी वो मेरे दिल में
सच्चाई से दिल में झांक ना सके-
बचपन के दोस्त याद आते हैं
स्कूल की पुरानी फोटो देखकर
आंखों में आंसू बह जाते हैं
मैं लौटना चाहता हूं फिर से
कि बचपन के दोस्त याद आते हैं
स्कूल बेंच से नाम नहीं मिटता था
आज दिलों से इंसान मिट जाते हैं
जो थे जैसे भी थे वो बेहतर थे
कि बचपन के दोस्त याद आते हैं
तब एक टिफिन के तीन हिस्से थे
अब सब अकेले अकेले खाते हैं
मुझे फिर से छीनना है उनसे टिफिन
कि बचपन के दोस्त याद आते हैं
कभी दूर से नाम लेकर चलाते थे
आज अनजान बनकर गुजर जाते हैं
कोई उन्हें जाकर बताओ यारों
कि बचपन के दोस्त याद आते हैं-
हो जाए मुश्किलों से सामना
हताश ना होना कभी भी तूम
चुन लेना अपनी मंजिल एक
राह की कभी परवाह न करना
बस चलता जा चलता जा तू
याद कर वो अपनी हर एक
जिंदगी में आयी मुश्किलों को
निराश ना होना कभी भी तूम
भूलाकर दुनिया की वो बातें
बस चलता जा चलता जा तू
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आज भी शाम गुजर जायेगी
कल भी शाम गुजर जायेगी
हर दिन तरह यूँ ही आज भी
मेरे मन को तन्हा कर जाएगी
बहला लेते है अब हम मन को
हर रोज की भांति छूप-छुपके
आदत सी बन गई है अब तो
हर रोज अब दिल बहलाने की
आज भी शाम गुजर जायेगी
और यूँ ही एक बार मुझको
यह शाम तन्हा कर जाएगी
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बता भी नहीं सके वो हमको
यूँ चले गए बिना बताये हमें
जिंदगी की वो एक हमारी
यूँ एक आदत सी बन गए
सबकुछ बदल सा गया है
कुछ नहीं अच्छा लगता है
तकलीफ हमारी समझे नहीं
कह गए जिंदगी बिताने की
जाने से पहले एकबार तो
बता कर फिर ही चले जाते-
जरा अब हम ही बदल जाएँ
क्यों करे अब किसी से शिकवा
शिकायत नहीं अब कोई उनसे
जिन्दगी से इस कदर ख़फा हुए
चाहकर भी हम रोक नहीं पाए
एक पल हमारा ख्याल ना आया
क्यों आए इस बेखोफ जिंदगी में
एकबार भी हमें याद नहीं किया
यूँ बार बार उनका इंतजार किया
रोक नहीं पाए आंखो के आँसू
देख यूँ दुनिया की झूठी आस को
जरा यूँ अब हम ही बदल गये।।
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करता है यह जो शाम का इशारा
दिल खोल कहता मेरे मन-मीत को
मधुर शाम की यह गोधुली सी वेला
पक्षियों के यह मधुर-मधुर से गीत
शाम ढले की वह मिट्ठी-मिट्ठी चाय
आँगन में खेलते नन्हे मुन्ने बालक
आसमान में छा जाती घोर-घट्ठा
गायों का घर लौटता हुआ झुण्ड
याद मुझे दिलाता है यह आज भी
गाँव की मिट्ठी वो शाम का नजारा
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