सूनी बैठी है दिवारें भी इंतज़ार मे तेरी
तसवीर की किल अबतलक खाली है
इश़्क तो जैसे खेल है मुकद्दर का यारों
मुकद्दर के मुआमले मे मेरी हथेली खाली है
तू भी सोच के कैसे गुजरनी है उम्र मेरी
सफर लंबा है और जेब खाली है
मुद्दतों मुसाफिर कोई यहाँ से गुजरा नही
कहकशाँ है सारी रहगुजर फिर भी खाली है
उस औरत से भला क्या मांगे "वैराक"
वो जिसके के हाथ पहले से ही खाली है-
हूजूम ये काफ़िले ये मैफ़िले ये रौनक-ए-जिंदगी
तेरे शहर मे तन्हा भी होते तो ख़ुश-क़िस्मत होते....!!!-
मेरे हाल को तूम जरा ग़ौर से देखो
संभलते नही हम किसी और से देखो
जिन गलियों मे जलाऐ चराग़ उम्मिदों के
बेर्दद हवाऐं चली उसी और से देखो
अब यहां हूं के वहां हूं कोई ख़बर नही
अंधेरा ही अंधेरा है चारों और से देख
यूं हैरत ना कर मेरे हाल पर अब तू
के संभलना मुश्किल है मर जाने से देखो
वो जो गज़लों मे बाते हूआ करती थी कभी
वो वक़्त भी गूजर गया इस दौर से देखो
तमाम शहर भर से रंजिश का उसने "राणा"
हमसे लिया ये बदला किस तौर से देखो...!!!-
हमे इल्म़ है इस बात का तुम्हे
कोई फर्क नही किसी बात का
तुम्हारे बगैर कैसे गुजारा होगा
ये मसला नही है इक रात का
लम्हे वस्ल के तुम्हे मुबारक रहे
हम पे पहरा हिज्र के हालात का
माना के हाल ए दिल कह नही पाए
आंखे मगर आईना थी जज़्बात का
जैसे बहार से खिजाँ तक का सफ़र
सबब ये मिला इस मुलाक़ात का...!!!
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इक शाम फिर उदास कर गई
इक रात फिर क़त्ल के इंतजार मे है...!!!
कुछ यूं है तनहाई का आलम
इक उमर बस कटने के इंतजार मे है...!!!
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हजारो तरीके है रस्म-ए-उल्फ़त निभाने के
दर्द मे भी मुस्कूराना "अंतिम" है...!!!-
कहां कब कुछ पाया हमने अपनी मर्जी से
तुम्हीने चाहा और तुम्ही ने छोडा अपनी मर्जी से...!!!-
!!! पुछ लो ना कभी हमसे हमारे दिल की बात भी
अब बात चली है तो हो जाने दो कुछ बात भी !!!
!!! कुछ तूम अपनी कहो कुछ मै भी अपनी सुनाऊ
कभी तो एक होते है तीनों तूम मै और हालात भी !!!
!!! कुछ ख़्वाब मुद्दत से तनहा है इन आंखों मे
है मुद्दतों से तनहा हमारी हर रात भी !!!
!!! बदलते है रंग मौसम ए गुल भी वक़्त आने पर
पता नही था बदलते है लोग अपनी ज़ात भी !!!
!!! इक तूम मिले थे ऐसे जैसे दश़्त मे ओस की बूंदें
अब तो अच्छी नही लगती हमे ये बरसात भी !!!
!!! तूम चाहते अगर चाहने वालों की तरहा जाना
हमे मिलाने मे जुड जाती ये सारी कायनात भी !!!
!!! नही गवारा किसी बात का शोक़ मनाना साहीबा
अज़ल से ही जब रही ना-गवार सारी हयात भी...!!!-
याद किया गया मैं बडी मुद्दत के बाद
बडी मूद्दत के बाद बडा रोया हूं मैं...!!!-
पुछ लेते हमसे कभी के कैसा चल रहा है
यार तेरे बगैर सब जैसे का तैसा चल रहा है
बाद तुम्हारे हम तो किसी के हो नही पाए
आने जाने वालों का तो आना जाना चल रहा है
थम सा गया है मानो जैसे जिंदगी का सफ़र
वक़्त का कारवां है के बहोत तेज चल रहा है
मौत भी इक बार मे ही किस्सा ख़तम कर देती है
उम्रकैद का सिलसिला काफी लंबा चल रहा है
मुझको अब आज़ाद कर दो इन यादों की कैद से
कब से फक़त यादों पर ही गुजारा चल रहा है
उनकी गज़लों मे जो जिक्र होने लगा मेरा
फिर बिखरे ख़्वाबों को समेटना चल रहा है
मु द्द तों बा द तु म्हे या द आ यी मे री
ज़हन मे तुम्हारे आखिर क्या चल रहा है-