शहर तेरा गली है और मैं हूँ
पुराना वास्ता है और मैं हूँ
चेहरा वही आवाज और मैं हूँ
दरमियां तल्ख़ियां है और मैं हूँ
पांव वही पायल और मैं हूँ
फ़र्क बिछुए का है और मैं हूँ
मन्नत के धागे पुरज़ोर बंधे हैं
चटकता राब्ता है और मैं हूँ
शानों पर न हाथों में हाथ उसका
अजब वो शाइस्ता है और मैं हूं...
किया मंज़ूर पहलु में उसने कल,
रक़ीब अब वाबस्ता है और मैं हूं...
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