जो रिसते हैं
वो रिश्ते हैं-
असर ग़ज़ब है ज़ेब के हल्केपन में
किस कदर पांव भारी कर डाला है ..-
रोज़ तोड़ता बनाता हूं
तेरे ख़्वाब फिर सजाता हूं
रास्ते भले ही कहीं मुड़े
उल्टे पांव तेरी गली आता हूं
अपनी अना की धूप में
तुझ तक पगडंडियां बनाता हूं
तुम जहां जहां से गुजरे हो
मैं तेरे नक्श चूम जाता हूं
जाने किस दुआ में असर आए
रोज़ सजदे में गिरता जाता हूं
पलट कर खोल दे दरवाजा
तेरी चौखट तो रोज़ आता हूं
मुझ जैसे फ़कीर की किस्मत
तेरे नमक पे बिका जाता हूं
मैं तो पानी तेरी यादों का
अपनी आंखों से छलका जाता हूं-
ए ख़ुदा अब तो दुआ में असर भी रख
वरना मर के भी कितना ज़िन्दा रहूंगा मैं-
दिल है कि तेरे पाँव से पाज़ेब गिरी है
सुनता हूँ बहुत देर से झंकार कहीं की
— % &-
हर तस्वीर में देखा है
सबका हाथ पकड़ती हो
एक अंगूठी छिटकी थी
अब पहना दो...
मेरा तो सब सामान
तुम्हारे पास पड़ा है
अब भिजवा दो...-
इतनी शिद्दत की हिकारत
को भी सीने में दबा
सांस तो आती-जाती रही
यूं वो ज़िन्दा न रहा.....
© राकेश मुदगिल-