Rakesh Mudgil   (© राकेश मुदगिल)
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ज़िन्दगी क्या है अनासिर् में ज़हूर् ए तर्तीब्
Joined 18 April 2017


ज़िन्दगी क्या है अनासिर् में ज़हूर् ए तर्तीब्
Joined 18 April 2017
31 JAN AT 10:09

जो रिसते हैं
वो रिश्ते हैं

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18 JUN 2023 AT 5:52

महरूमी ये कितनी बड़ी रह गई
ज़िन्दगी खड़ी थी , खड़ी रह गई

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10 APR 2023 AT 22:45

असर ग़ज़ब है ज़ेब के हल्केपन में

किस कदर पांव भारी कर‌ डाला है ..

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11 MAR 2023 AT 22:57

रोज़ तोड़ता बनाता हूं
तेरे ख़्वाब फिर सजाता हूं

रास्ते भले ही कहीं मुड़े
उल्टे पांव तेरी गली आता हूं

अपनी अना की धूप में
तुझ तक पगडंडियां बनाता हूं

तुम जहां जहां से गुजरे हो
मैं तेरे नक्श चूम जाता हूं

जाने किस दुआ में असर आए
रोज़ सजदे में गिरता जाता हूं

पलट कर खोल दे दरवाजा
तेरी चौखट तो रोज़ आता हूं

मुझ जैसे फ़कीर की किस्मत
तेरे नमक पे बिका जाता हूं

मैं तो पानी तेरी यादों का
अपनी आंखों से छलका जाता हूं

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16 FEB 2023 AT 22:40

ए ख़ुदा अब तो दुआ में असर भी रख

वरना मर के भी कितना ज़िन्दा रहूंगा मैं

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30 JAN 2022 AT 3:42

वो जो तुम में रहता है
तुम भी रहते हो क्या उस में ...— % &

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27 JAN 2022 AT 0:07

दिल है कि तेरे पाँव से पाज़ेब गिरी है
सुनता हूँ बहुत देर से झंकार कहीं की

— % &

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23 JAN 2022 AT 2:03

हर तस्वीर में देखा है
सबका हाथ पकड़ती हो
एक अंगूठी छिटकी थी
अब पहना दो...

मेरा तो सब सामान
तुम्हारे पास पड़ा है
अब भिजवा दो...

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12 FEB 2019 AT 0:43

पाजेब की
हसरत में चौखट ने

किवाड़ों को
गहने दिला दिए....

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5 MAY 2018 AT 22:30

इतनी शिद्दत की हिकारत
को भी सीने में दबा
सांस तो आती-जाती रही
यूं वो ज़िन्दा न रहा.....

© राकेश मुदगिल

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