कैसा ये प्रकोप, कैसी ये बीमारी है कोरोना है पाप किसी का किया हुआ या फिर सभी के जनाज़े की तैयारी है कराह रहा हर देश यहां बदल रहा हर वेश यहां कैसी बेकार और बेवजह महामारी है
मोहब्बत है निगाहों में मेरे कभी आकर कुछ पल गुज़ार। हसरत है बस ये मेरी करता रहूँ सिर्फ तेरा दीदार। कभी फुर्सत मिले और गलियों से मेरे दिल की गलियों में कर इख़्तियार। कभी आकर कुछ पल गुज़ार