क्यों हमसे वो रूठ गए
सफ़र में जो भी साथ चले थे
रफ़्ता रफ़्ता छूट गए...
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Rakesh Kushwaha
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निकल गया मैं ज़द से बाहर पाने या फ़िर खोने की
नहीं ज़रूरत साबित करनी अपने ज़िन्दा होने की
Botan... read more
नहीं ज़रूरत साबित करनी अपने ज़िन्दा होने की
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Joined 19 February 2019
21 JUL 2022 AT 22:52
13 JUN 2022 AT 23:51
पर मैं तुम्हें न खो पाया
न जी भर हँसने की मोहलत मिली
न जी भर कभी भी रो पाया...
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12 JUN 2022 AT 23:28
आओ मरहम बन जाते हैं
इक दूजे के ज़ख़्मों के
क़िरदार में फिर खो जाते हैं
इक दूजे के सपनों के
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10 JUN 2022 AT 23:43
जाने कहाँ भटकता होगा
यादों के बिखरे आँगन में
बन के दर्द टपकता होगा
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1 JUN 2022 AT 22:42
क्या हुआ ग़र ज़ख़्म मिल गए यूँही चलते चलते
हर चेहरे के पीछे का चेहरा कौन पढ़ता है
जिसको पाना है निगाहें ढूँढ ही लेंगी
दुनिया कि आँखों का पहरा कौन पढ़ता है
नदियों का हमराह बन दरिया तक पहुँचाएंगी
झीलों के पानी सा ठहरा कौन पढ़ता है
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11 FEB 2022 AT 0:01
ज़िन्दगी मैंने कब चाहा तू पूरा हिसाब दे
कुछ दूर तो चल सकूँ, कुछ लम्हें कुछ ख़्वाब दे
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4 FEB 2022 AT 23:12
दिल तन्हा तन्हा रोता है
लगता सब कुछ हासिल है
पर हर लम्हा कुछ खोता है
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20 JUL 2020 AT 20:36
तेरी यादों के समंदर में इतनी है गहराई
न क़ैद लाज़मी है न मुमकिन है रिहाई
झुकी झुकी सी नज़रों की बेबसी देखो
अश्क़ पशेमां हैं और आँखें तमाशाई-