Rakesh Kumar   (केशाय)
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Joined 22 September 2018


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Joined 22 September 2018
7 DEC 2024 AT 1:23

जो बैचेन है मुझमें वो है कौन
ओर जो बेफ्रिक था मुझमें वो है कहाँ,

बस यही फर्क जवानी ओर बचपन में लिखा ।
बस यही फर्क जवानी ओर बचपन में लिखा ।

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15 JUL 2024 AT 22:37

ख़ुशी, रुकीं न कई मर्तबा,
उसके, न आने के कई बहाने है,

मुस्कुरा के जिंदगी में,
मैंने, छुपाए गम कई सारे है,

दिन गई, रात गए,
गए साल, गए जमाने है,

गम है, बिस्तर मेरा,
ओर बैचैनी मेरे सिरहाने हैं।

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15 JUL 2024 AT 1:23

उसने ठुकराया था मोहब्बत मेरा,
पाने को ऐसों-आराम दौलत-शोहरत,
ख़बर आया है, कि वो लौट आए हैं शहर में,
और केशा पैगाम ये है,
वो फिर सुकून की तालाश में,
हमसे मुलाकात की कोशिश में है।

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11 JUL 2024 AT 4:18

रात से,
इस उम्मीद में हूं,
की नींद आए,
फिर ख्वाब आएं,
और अब सवेरा हो चला है,
कमबख़्त
न नींद आई,
न ख्वाब आएं।

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2 JUL 2024 AT 0:08

हमें उस रूह का इंतजार है,
जिसके लिए सहेज के रखा,
मैंने, मेरा इकलौता इजहार है।

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20 APR 2024 AT 22:51

हमनें सुनाई नज़्म अपनी,
असर तो देखो महफ़िल में,

जिसने समझा,
जिसने... समझा.......
उसने वाह वाह किया,

और
जिसने महसूस किया,
वो खामोश रह गया।

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16 APR 2024 AT 20:05

जब जब मुझको तेरा खुबसूरत अक्ष दिखा है।
मैंने तारीफ में तेरे लिए कागज, श्याही, कलम ओर कुछ लफ्ज़ लिखा है।।

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3 MAR 2024 AT 10:55

कुछ हम भुलाते,
कुछ तुम भुला देती,
ओर फिर हमें मौत बुला लेती।

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21 NOV 2023 AT 9:46

पुराने एलबम निकालें हैं,
हर कोई, पुछता क्या देख रहे हैं?

हमने भी कहा,
नम सी आंखें, धीमी सी आवाज में,
यादें कुरेद रहे हैं,
यादें कुरेद रहे हैं।

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28 SEP 2023 AT 23:31

लिख कर रखे थे अहसास,
जो अपने पिटारे में बंद करके।
उन्हें आज सामने रख दिये हैं,
खुद को सताने के लिए।

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