Rakesh Jha   (कलयुगी जटायु)
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Joined 24 December 2019


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8 JUN 2024 AT 22:35

पहली बारिश की बूंदें और एहसासों की गरमाहट,
ठंडी पतली सी बयार की सिहरन और पुरानी यादों की आहट.

ख्वाहिशों की गप्पेबाजी और बचकाने कागज के नाव का डगमगाना,
इक शाम भीगी भागी सी और अल्हड़ लड़कपन सा भोर का गाना.

बरसात के सांझ की बात ही कुछ और है।

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8 JUN 2024 AT 12:18

फ़लसफ़ा इतनी सी है की..

दूरियों में ही परखे जाते हैं रिश्ते,
आँखों के सामने तो सब वफ़ादार होते हैं।

चारदीवारी को घर बनाने वाले हुनरमंद,
बड़े नायब हैं आजकल इस दहर में,
ऐसे फ़रिश्तों की कद्र करो,
वरना कहने को तो बिन छत के मकान भी हवादार होते हैं।

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2 AUG 2020 AT 14:07

मैत्री

पवित्र स्नेह का बंधन मैत्री,
राजा देखे न रंक मैत्री।
मैं से हम का संबोधन मैत्री,
अंतर अवलोकन का दर्पण मैत्री।।

अतुल्य  है,  बहुमूल्य  ये  मैत्री,
मानस अहम का त्याग है मैत्री।
कोमल मन का समागम मैत्री,
वचन की प्रतिबद्धता है मैत्री।।

मित्र पर सम्पूर्ण आस्था मैत्री,
सत्य हृदय से व्यवहार मैत्री।
इस दहर का उपहार मैत्री,
स्व का सर्वस्व समर्पण मैत्री।
लेन देन के इस संसार में,
निज स्वार्थ का प्रतिकार मैत्री।।

रे 'जटायु' गांठ बांध राखिये,
इक साची सार सत मैत्री।
बिना शर्त जो होवे मैत्री,
जीवन सफल उत्तम वही मैत्री।

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29 MAY 2020 AT 15:40

देखा है गांव को शहरों में तब्दील होते हुए,
सौंधी खुशबू वाली खुशहाल-ए-रूह को
सीमेंट रेत की चादर-ए-बोझिल ओढ़ते हुए।

'जटायु' मुद्दतों बाद मिट्टी के घरौंदे में ही मिला सुकूँ,
देखा तपते धूप में अमीरों के ताबूत जलते हुए।।

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10 MAY 2020 AT 22:04



क्या लिक्खू तेरे लिए, तूने ही तो मुझे लिखा है,
क्या बोलूँ तेरे लिए, तुझी से तो सब सीखा है।

कर्ज़ तेरा चुका न सकूंगा इस जनम,
ऐ मालिक तेरे से बस इतनी है इल्तिज़ा,
संतान बनाना मोहे इस मां की, अगले सातों जनम,
बाद में चाहे बना दे कीट, पतंगा, या दे सज़ा।

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10 MAY 2020 AT 13:11

"माँ" एक शब्द नहीं, सृष्टि है मेरा,
उद्गम है, पालक है, प्रथम शिक्षक है मेरा,
मुस्कान है, आंसू है, निशब्दता में प्रथम शब्द है मेरा।।
मैं तो केवल हाड़-मांस का पुतला हूँ,
तू ज़िन्दगी, सम्पूर्ण "मैं" है मेरा।।

आज काव्यांजलि को अक्षर कम पड़ गए,
क्या शब्द हो स्वयं उनके लिए,
जिसे ईश्वर सृजन की ताकत दे गए।
क्या बोलूँ मैं उस माँ के लिए, जो बोलना सिखाती है,
माँ तो माँ होती है, देवियों को दुआ नहीं दी जाती है।।

मैं तो केवल हाड़-मांस का पुतला हूँ,
तू ज़िन्दगी, सम्पूर्ण "मैं" है मेरा।।

त्याग, वेदना, संवेदना, नौ मास तक की सिंचाई,
असह्य कष्ट सहकर भी, जिसने प्रथम रोशनी दिखाई,
किलकारी से खुश होकर, गोद की गर्माहट लिपटाई,
तेरी कोमल उंगलियां, सर्वप्रथम स्पर्श है मेरा,
मैं तो केवल हाड़-मांस का पुतला हूँ,
तू ज़िन्दगी, सम्पूर्ण "मैं" है मेरा।।

मेरी तुतली बोली को तूने स्पष्ट बनाई,
मधुर लोरी से तूने, संगीत की पहचान कराई,
उंगली पकड़कर तूने, दुनिया की राह दिखाई,
मैं गुड्डा तेरा, तू सर्वप्रथम खिलौना है मेरा,
मैं तो केवल हाड़-मांस का पुतला हूँ,
तू ज़िन्दगी, सम्पूर्ण "मैं" हैं मेरा।।

प्यार का समंदर तू, कभी डांट-डपट भी खिलाई,
मानवता, संस्कार, परम्परा की प्रथम पाठ सिखलाई,
तू प्रेरणा है, अभिमान है, भगवान है मेरा,
मैं तो केवल हाड़-मांस का पुतला हूँ,
तू ज़िन्दगी, सम्पूर्ण "मैं" है मेरा।।

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26 DEC 2019 AT 11:04

खुद मिलने से ज्यादा, ख़यालात मिलने जरूरी हैं,
ज़िन्दगी राहें इकरार जरूरी है।
पूरी न सही पर मेरी कुछ बातें, अब भी तुझे याद होगी शायद,
मुकम्मल किस्सा न सही, उसका बस इक किरदार होना जरूरी है।

अब तक न मिल पाएं तो इसका हिचक कैसा,
हम ख्वाबों में तो रोज़ मिला करते होंगे।
होश में न सही, बेहोशी में ही सही,
कुछ तो बात रही होगी, हम यूं ही तो ना मिले होंगे।

रोज़ बातें करने से कोई करीब नहीं होते,
खामोश रहने वाले हमेशा गरीब नहीं होते
मैन दररोज देखा हैं खामोश पेड़ों को,
अमीरी लुटाते हुए।

आज बर्फ का तूफ़ां आया है आशियाँ में मेरे,
कुछ झोंकें तेरे मकान पर भी गए होंगे।
बिखरा पड़ा है अब सारा सामान मेरा,
कुछ खिड़कियों के पर्दे तेरे भी उड़े होंगे।
होश में न सही, बेहोशी में ही सही
कुछ तो बात रही होगी, हम यूं ही तो ना मिले होंगे।।

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20 JUN 2020 AT 14:29

पंख झाड़ रख रे 'जटायु',
गुज़र जाएगा ये वक़्त भी।
फर्राटे से नील गगन में,
तब उड़ चलूंगा तेरे संग।।

बहोत हुआ ये वायरस का हुड़दंग,
त्राहि करता मानवता उमंग।
हम जिद्दी इंसाँ के जुनूँ से,
जीत जाएंगे ये भी जंग।।

मास्क और सैनिटाइजर को,
बनाकर अपना नया ढंग।
नई रीत है, नया गीत है,
लेकर इक नूतन तरंग।।

पंख झाड़ रख रे 'जटायु',
गुज़र जाएगा ये वक़्त भी।
फर्राटे से नील गगन में,
फिर उड़ चलूंगा तेरे संग।।

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29 MAY 2020 AT 16:20

मजदूर मजबूर सियासत भरपूर,
सितमगर कोरोना ने रखा अपनों को दूर।

चांद मंगल घूम आने वाले ने,
खुद को खुदा समझ रखा था।
खुदाई का इल्म तब हुआ,
जब उसके एक ज़र्रे ने कहर मचा दी।
रब की किराये की दुनिया तो संभाली न गई,
ख़ुदग़र्ज़ दूसरी दुनिया ढूंढने चला था।।

हालात-ए-मजबूर या कि दानिश-ए-फ़ितूर,
तीनत पर सितमगरी का हुआ खुमार चूर।
जुनून-ए-अज़ीम इंसा हो तुम, 'जटायु' इंसा ही रहो,
वक़्त है कि फिर पत्थर काट रास्ता बनाओ।।

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5 MAY 2020 AT 9:48

यादों के झरोखे में समेट रखे थे कुछ ख़याल
तेरी तस्वीर, कुछ लम्हें और कुछ साल।

आज तेरे जन्मदिन पर फिर उस झरोखे में गया मैं,
सोचा कुछ पुरानी यादें ढूंढ लाऊंगा,
उसे नए जज्बात में लपेटकर, तुझे भेंट भेज पाऊंगा,
पर हसीन यादों के इस मेले में, आज फिर भटक गया मैं।

असमंजस में था, समझ न आया तुझे क्या उपहार दूं,
मेरा बस चले तो तुझपर सारा जहां वार दूं।
फिर सोचा बनाता हूँ एक दुआओं का तोरणहार,
हार जो झालरयुक्त हो, बसन्ती हो, सदा रहे उसमें बहार।

ऐ दोस्त दुआ है काल के इस आपाधापी में,
शांत शीतल नदी बनो तुम,
अविरल रहो, शाश्वत रहो, चिरजीवी बनो तुम।
यदि कहीं कुछ पल ठहर जाओ, मीठी झील बनो तुम,
कड़वाहट के बीच सबके जीवन की मिठास बनो तुम।

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