अब जो में तुम्हे देखता हु, तो सोचता हु,
कि अच्छा ही हुआ, जो हम साथ नही !
क्यों की शायद इससे ज्यादा में तुम्हे बर्दास्त नही कर पाता
और शायद तुम रोक नही पाती खुद को मेरे करीब आने से-
मेरे सब्र का क्या इल्म होगा तुम्हे !
मेने पलट कर नही देखा, जिससे मुंह फेर लिया ।-
दुश्मनी नही है, किसी से भी ए शक्श ।
बस अब प्यार नही रहा हमारे दर्मियां ।-
शिकायत क्यों करू
ये तो किस्मत की बात है ।
तेरी सोच में भी नही में
मुझे तू लफ्ज लफ्ज याद है ।-
किसी मुसाफिर सा चल रहा था खुदकी ही तलाश में !
भटक कर रास्तों मे, अपनी मंजिल को ही खो बैठा ।
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ना जाने कितने सिर झुकें होंगे सजदों मै तेरी ही खातिर..
और ना जाने कितनी दुआओं मै नाम तेरा आया होगा।
और एक कामयाबी के नशे मे चूर, इंसान अपनो को भूल गया।
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एक कसक, एक टीस सी रहनी चाहिए अब उसकी जिंदगी मै भी।
कि ये जिंदगी कितनी हसीन होती, अगर हम साथ होते।-
एक उम्र गुजर गई, तुम्हारे इनतेजार मै।
और तुम कहती हो कि हमे सब्र नही आता।-
उसे कोसा बहुत ओर टोका भी ।
भला बुरा बहुत उसे कहा भी ।
उसके हर एक ऐब को, लिखते चला में ।
कुछ यूं तील तील कर मिटते चला में ।
उसकी हर एक बाते जो मुझे अच्छी लगती थी ना ।
उन्ही सभी बातों को याद करके मायूस भी कई बार हुआ हू ।
क्या बताऊं यारों, में किस तरह जार जार हुआ हू ।
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कोई वाक्या, कोई बात, कोई गलती मालूम तो हो हमे भी...
ये जो दूरियां है तेरे और मेरे दर्मियाँ,
इसकी वजह क्या है !-