Raju Kumar Jha   (राजू कुमार झा)
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Joined 28 June 2018


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Joined 28 June 2018
19 MAY AT 0:49

तूझे आवाज़ दे कर रोकता मैं, मगर फिर सोचता हूं,
क्या कहूँगा?
उठाता हूँ मैं काग़ज़ और कलम पर, फिर ये सोचता हूं,
क्या लिखूँगा? 

वो रस्ते क्यूं चलूँ मैं, जिसमें ख़तम दूरी ना होगी
वो किस्से क्यूँ लिखूं मैं, जो कभी पूरी ना होगी।

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16 MAR AT 2:15

ये दुनिया एक उलझन है, जिसे ना मैं समझ पाता,
कभी रिश्तों के बंधन में, हूँ मैं गुमराह हो जाता।

जिसे अपना कहे दुनिया, कभी वो ही सताता,
जिसे हम दूर से देखें, कभी हमको है भाता।

ये अपने और पराए से बड़े अनजान से हम हैं,
जो हँस कर संग चले, संग उसके मैं सपना सजाता।

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2 NOV 2024 AT 0:20

ज़माने की नजर में हम बड़े तो हो गए लेकिन,
अपनी मासूमियत खोकर बड़ी कीमत चुकाई है...

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17 AUG 2024 AT 16:37

हैवानियत से लड़कियों को घूरने वाले,
तुझे कैसा लगेगा, ग़र तुझे बेटी हुई तो।

करे भगवान घर तेरे कोई बिटिया नहीं दे!
पता क्या तेरी नियत तब भी जो ऐसी रही तो..

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26 MAY 2024 AT 4:06

चाँद को दूर से देखो तो भला है राजू,
जाओगे पास तो फिर दाग नजर आएगा।

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15 MAR 2024 AT 2:52

रास अब आने लगा मुझको ये अंधेरा,
उजालों में मुझे अपनों के चेहरे साफ दिखते हैं...

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6 MAR 2024 AT 20:22

बस इसी कश्मकश में रात भर जागा रहा मैं,
उसे अब भूलना तो था, पर तड़पना नहीं था...

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10 JAN 2024 AT 15:19

तादात गिरगिटों की कम होने लगी तो,
सुना है आदमी अब शक़्ल बदलने लगा है...

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26 DEC 2023 AT 18:41

दुनिया जैसे कोई माया का जाल है,
जैसा था कल मेरा, वैसा ही हाल है।

दिन वही रहते हैं, बीत जाता हूँ मैं,
लोग कहते हैं, देखो नया साल है...

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15 NOV 2023 AT 22:33

जला कर सैकड़ों दीपक, किये जगमग जहां को हम,
मगर मन के अंधेरे को भला कैसे मिटाएं।
कभी जो काँच सा सपना कोई हमने सजाया था,
अब किस्सा टूट जाने का कहो किसको सुनाएं।

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