तूझे आवाज़ दे कर रोकता मैं, मगर फिर सोचता हूं,
क्या कहूँगा?
उठाता हूँ मैं काग़ज़ और कलम पर, फिर ये सोचता हूं,
क्या लिखूँगा?
वो रस्ते क्यूं चलूँ मैं, जिसमें ख़तम दूरी ना होगी
वो किस्से क्यूँ लिखूं मैं, जो कभी पूरी ना होगी।-
Music lover... Love singing
I always prefe... read more
ये दुनिया एक उलझन है, जिसे ना मैं समझ पाता,
कभी रिश्तों के बंधन में, हूँ मैं गुमराह हो जाता।
जिसे अपना कहे दुनिया, कभी वो ही सताता,
जिसे हम दूर से देखें, कभी हमको है भाता।
ये अपने और पराए से बड़े अनजान से हम हैं,
जो हँस कर संग चले, संग उसके मैं सपना सजाता।-
ज़माने की नजर में हम बड़े तो हो गए लेकिन,
अपनी मासूमियत खोकर बड़ी कीमत चुकाई है...-
हैवानियत से लड़कियों को घूरने वाले,
तुझे कैसा लगेगा, ग़र तुझे बेटी हुई तो।
करे भगवान घर तेरे कोई बिटिया नहीं दे!
पता क्या तेरी नियत तब भी जो ऐसी रही तो..-
चाँद को दूर से देखो तो भला है राजू,
जाओगे पास तो फिर दाग नजर आएगा।-
रास अब आने लगा मुझको ये अंधेरा,
उजालों में मुझे अपनों के चेहरे साफ दिखते हैं...-
बस इसी कश्मकश में रात भर जागा रहा मैं,
उसे अब भूलना तो था, पर तड़पना नहीं था...-
तादात गिरगिटों की कम होने लगी तो,
सुना है आदमी अब शक़्ल बदलने लगा है...-
दुनिया जैसे कोई माया का जाल है,
जैसा था कल मेरा, वैसा ही हाल है।
दिन वही रहते हैं, बीत जाता हूँ मैं,
लोग कहते हैं, देखो नया साल है...-
जला कर सैकड़ों दीपक, किये जगमग जहां को हम,
मगर मन के अंधेरे को भला कैसे मिटाएं।
कभी जो काँच सा सपना कोई हमने सजाया था,
अब किस्सा टूट जाने का कहो किसको सुनाएं।-