जख्म है जिन्दगी के,
वक्त के साथ भर जाएगें,
गए हैं जो लोग मुझे छोड़कर,
अकेले इस वक्त में,
वो मेरे अच्छे वक्त में,
लौटकर फिर कैसे आएगें,
जब बदल सकता है,
इंसा बातों-बातों में,
समय भी तो बदल जाएगा,
कुछ दिन-रातों में,
अक्सर चमका वही है,
जीवन मे सितारों सा,
जो हर बार खड़ा हुआ है,
बचकर हर आघातों में,-
नहीं हो साथ तुम मेरे मगर यादों में पलती हो।।
जिसनें भी कहा भरोसा नहीं क्या मुझ पर,
सच में वही मेरे भरोसे के काबिल नहीं था।
और किसे कहूँ मै अब अपना सहोदर सगा,
कौन था जो मेरी बर्बादी में शामिल नहीं था।।-
हम भी अपनें गांव में खेला करते थे,
हमको भी हालातों ने घर के बाहर भेजा है।
हम में भी है अभी जिन्दा एक गांव मेरा,
हमको अब भी चकाचौंध शहर डराता है।।-
मेरा लिख्खा पढोगे अगर तो,
मेरे बारे में थोड़ा जान पाओगे,
मुझसे बिना मिले ही तुम,
मुझको पहचान पाओगे,
यूँ तो अब रूठनें मनाने
का मन नहीं मेरा
पर लगता है कि
एक दिन तुम मान जाओगे
-
इंसान जिन्दगी का युद्ध हार ही जाता है,
हर किसी को कोई अपना मार ही जाता है,
और सारथी रहे तब तक तो जीत ही लेगें,
गर स्वार्थी बन गए फिर तो हार ही जाना है,-
तेरी जुल्फों में उलझकर मैं आबाद हो जाऊँ,
कि जैसे मै गुजरात का अहमदाबाद हो जाऊँ,
कब तक निहारुँ मैं तुम्हें यमुना और ताज जैसा,
कोई गंगा मिले मुझको तो मै इलाहाबाद हो जाऊँ,
और आजकल कहनें लगा हूँ गजलें कुछ मैं भी,
यही चाहती थी न तुम कि मैं बर्बाद हो जाऊँ-
बचाकर अपनीं अनमोल जवानी रखना,
खुद का किरदार दुनिया की कहानी रखना,
कभी तो मेहरबानियो की बारिश होगी तुम पर भी,
लव भले खामोश पर आँखों का जिंदा पानीं रखना,
नये दौर के फैशन में ला लो चाहे चीजें नई सारी,
पर घर में परिवार की एक तस्वीर पुरानी रखना,-
“जुड़े हुरियार संग नन्द कौ कुमार अरु होरी को
मच्यौ है हुड़दंग ब्रजभूमि में,
ढोलकी बजाए कोऊ ठुमका लगाए कोऊ चहुँ
दिश बाजत मृदंग ब्रजभूमि में,
कुआँ पुजमायौ घाघरे में पीत पट छीन सांवरो
कियौ री मिली तंग ब्रजभूमि में,
इन्द्र की सभा में सब हाथ मलि सोच रहे हौं भी
खेल पाते कभी रंग ब्रजभूमि में..!”-
वीर नहीं डरा करते हैं,
विपदा के संघर्षों से,
खोते नहीं हैं धैर्य अपना,
लड़ते रहते वर्षों से ,-
शाम होना भी जरूरी था,
सूरज ढलनें के लिए,
तुम्हारा दूर जाना भी जरूरी था,
मेरे सम्हालनें के लिए,
दिल तो मचलेगा ही लाजमी है,
जिंदा होना भी तो जरूरी है,
सासों को चलानें के लिए,-