तुम्हारे स्पर्श से, मैं बन जाती हूँ कलिंग
की सर्वश्रेष्ठ नर्तकी और तुम
हाथ से बलुआ पत्थर को तराशते बिसु महाराणा
हर भंगिमाओं को जीवंत करते हुए
नग्न शरीर को पत्थरों पर उकेरते हुए
मैं महसूस करती हूँ, मेरे सम कोई नहीं
तुम्हारे लाल बलुआ पत्थर को मैं
'मैं' बनते देखती हूँ।
अपने दीर्घ देह, आयत्त आंखें, उन्नत वक्ष को देखती हूँ
और सोचती हूँ मैं, कि मैं सुंदरता की परिभाषा हूँ
या तुम कलिंग के सर्वश्रेष्ठ शिल्पकार।
मैं "त्रिभंग" करते हुए,
प्रभु जगन्नाथ बनती हूँ और तुम
मेरे भक्त की तरह हर ऋतु में
सदृश करते हो मुझे कोणार्क पर।
तुम्हारे तने भौहें, माथे पे पसीने की बूंदे
लीन होकर मुझे बलुआ पत्थर पर जीवंत करते हुए
मैं सुंदरता की परिभाषा तो नहीं पर,
तुम लगते हो कलिंग के सर्वश्रेष्ठ शिल्पकार।
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