सुबह का उजाला अंधेरा न हो
अंधेरा दिन का उजाला न हो
जैसा प्रकृति ने बनाया वैसा हो
न कोई बदले न मजबूरन वैसा हो...-
– तुम इतने निर्भीक कैसे !!!
"मै भावनाओं के दौर से गुजर चुका हूं" ...-
कोई नियम नही है
पाप के पुण्य के
महिला या पुरुष होने के
साधु या ग्रहस्थ होने के
खास पहनावे से पहचान के
मुस्कुराने के,मिलने के
हाल जानने के या बताने के
मंदिर में पापी को देखा ईश्वर से बात करते
शराब में चूर देखा एक सज्जन को रोते
कोई नियम नही है, कोई निर्धारण नही...
स्वयं जलों ,प्रकाश बनो
स्वयं निर्धारित करो नियमावली
कंधो में बोझ नहीं हिम्मत डालो...-
तुमसे मिलने की बैचैनी में भूल आई मैं अपना दुपट्टा
वो बिंदी वही चिपकी रह गई खिड़की पर
रोशनदान से निकलता धुआं गया होगा शायद अब
हाय कपड़े भिगोए रख आई हूं अब
उहापोह में आना तुम्हे एक घड़ी देख कर मुस्कुराना
जीवन जैसे श्वास भर कर जिया हो
तुम मेरी कंघी क्यों नही हो जाते हो!!!
जब भी उलझू जीवन में तो
तुम्हारी छुवन सुलझा दे मुझे हर बार ही
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तुम्हारी वो तमाम तस्वीरें खींचना चाहता
जिसे लोग कला नही कहते ...-