स्वयं को चाहना
चाहना जैसे ईश्वर को
स्वयं सा मिल जाना
मिलना जैसे स्वयंपथ से।
मै और तुम वही स्वयं है
इन सभी स्वयं और आपदा, अवसरों में
दृढ़ गूढ़ रहने का कौशल गढ़ने के लिए
शुक्रिया मित्र ❤️🙌
तमाम तरह के शुक्रिया ईश्वर को जिन्होंने
हमें गढ़ा और चुना जीवन पथ के लिए
इस जन्मदिवस की बेहद शुभकामनाएं
भ्रात ❤️🌸 बेहद बेहद आभार ईश्वर का
हमे अपने संज्ञान में वो हमेशा रखे...
-
"मेरे" तमाम लोग मुझसे आगे निकल जाएं।
मैं किनारे पर खड़ा रहूं ध्यान रखने,
वो साहिल को बहते उसे छू जाएं...-
जब मैं भूल जाऊंगा तुम्हे
तब अंतिम बार स्वयं को याद रख पाऊंगा
जब याद रखना पड़ेगा मजबूरी सा
तब अंतिम बार स्वयं को पुकार लगाऊंगा
पर मैं जरूर भूल जाऊंगा ...-
बरसते बादल,हल्की फुंहार कांधों पर
महकते मन,तासीर सुगंधित बयारो पर
कितना कुछ अल्प लगता,बहुत है तारों पर
मौन नही पूर्ण है वो,मुस्कुराहट अब गालों पर...-
रुकी घड़ी नही रोक पाती समय
मुरझाया पुष्प नही रोक पाता बसंत
भयंकर आकाल नही रोक पाता वर्षा
जीवन भी बढ़ना है,
सब दौर अस्थायी है।
उन्माद फैलेगा चाहे
दुःख अपार रहे।
जो त्रासदी लगता,
वही प्रस्फुटन भी है...-
मेज पर रखी चाबियां
परदों में हवा से सुगबुगाहट
कुर्सी पर रखी बाहें
कप में भरा इंतजार
चाय की भांप दहलीज तक
और तुम्हारे आने की आहट शहर पार
सब तैयारियां रोज दुरस्त रहती है
इंतजार अच्छा है हर शाम कहती है
पर रोज फिर "न आने" का ख्याल
जब पनपता है तो उस ख्याल से लेकर
फिर से आने के ख्याल तक बेहद बैचेनी रहती है...
-
कोई नियम नही है
पाप के पुण्य के
महिला या पुरुष होने के
साधु या ग्रहस्थ होने के
खास पहनावे से पहचान के
मुस्कुराने के,मिलने के
हाल जानने के या बताने के
मंदिर में पापी को देखा ईश्वर से बात करते
शराब में चूर देखा एक सज्जन को रोते
कोई नियम नही है, कोई निर्धारण नही...
स्वयं जलों ,प्रकाश बनो
स्वयं निर्धारित करो नियमावली
कंधो में बोझ नहीं हिम्मत डालो...-
तुमसे मिलने की बैचैनी में भूल आई मैं अपना दुपट्टा
वो बिंदी वही चिपकी रह गई खिड़की पर
रोशनदान से निकलता धुआं गया होगा शायद अब
हाय कपड़े भिगोए रख आई हूं अब
उहापोह में आना तुम्हे एक घड़ी देख कर मुस्कुराना
जीवन जैसे श्वास भर कर जिया हो
तुम मेरी कंघी क्यों नही हो जाते हो!!!
जब भी उलझू जीवन में तो
तुम्हारी छुवन सुलझा दे मुझे हर बार ही
-