RAJNISH SOLANKI   (RK Solanki)
32 Followers · 11 Following

The Reliable key of someone
Joined 12 April 2020


The Reliable key of someone
Joined 12 April 2020
27 APR AT 22:23

रोज सुबह से शाम खर्च हो रहा, मैं।
सादगी भरी जिंदगी में साफ हो रहा, मैं।
दीवाना हूं क्षणभंगुर दीदार होने का, मैं।
तसल्ली से खुद दिल्लगी कर बैठा, मैं।
मरहम सी सीरत में जख्मी कर बैठा, मैं।
यूंही बेवजह पलकें बंद नहीं कर पाता, मैं।
अब तारीखों के पन्ने बदल नहीं पाता, मैं।

-


27 APR AT 21:53

कैसे बताऊं कि क्या हो, तुम
आंखें स्पष्ट नहीं कहती,
कौन सी दवा हो, तुम।
मन मस्तिष्क के बहाव में,
ना जाने कौन सी स्वभाव हो, तुम।
ऐतब से तिरछी नजरें,
जैसे मेरे चशखे के समुद्र में हो, तुम।
मलाल रह जाती अंदर,
जितना भी रूह के पास हो जाओ, तुम।
पलों के ज़ख्म कहा खत्म होती,
वैसे भेदना जो जानती हो, तुम।
ढल रही बीत रही जो,
फुर्सत के बाद निहार सकूं वो हो, तुम।

-


26 APR AT 13:21

स्वभाव सा हूं, अपवाद सा हूं
कोनों में बैठा एक बैराग सा हूं
देख तलब में एक प्यास सा हूं
फैल सकूं वो मैं तन्मय सा हूं
गगन की उंचाई बादल सा हूं
वृक्ष के सूखे पत्ते का शेष सा हूं
बिखरी फूलों का फैलाव सा हूं
जलते हुए राग में राज सा हूं
ओढ़े सिसकियां हजारों सा हूं
बेदब झांकि बेढंग आम सा हूं
ढलते सूरज के बाद शाम सा हूं

-


26 APR AT 10:31

टूटते हुए को संवारे कौन, देख जलती बस्ती निवारे कौन।
यहां गुमनाम की पहचान नहीं, शीशे में परछाईं तराशें कौन।
औकात रंगों की क्या रंगीन करे, गमगीन तो कफन ढुंढती।
वैसे पंक्तियां ढुंढे किताबी नजरें, शीर्षके अब घर नहीं करती।
ऐतब करती हैरान और वीरान, उद्घोष सपनों की गहराइयां।
देख मचलती इरादे संवारती, जाहिर देश केवलम दौर हमारी।


-


22 APR AT 8:46

दाग तो है बहुत मेरे में। रंगों का क्या वो तो फिर भी मिट जाती एक दिन, उस बेरंग छवि का क्या जो कफ़न से कम नहीं।

-


21 APR AT 9:36

कथित रूप से वार प्रतिवार होने के पश्चात, मैंने आंतरिक युक्ति से एक वाण स्वरूप आधुनिक अस्त्र का उपयोग कर उसे अपनी ओर मुग्ध किया।
"कुछ नहीं फ्रैंक कीस किया था" 🤩

-


19 APR AT 19:26

कुछ ज्यादा दिल्लगी कर बैठा, नादान मैं घर कर बैठा, होती होगी त्रुटियां लोगों से पर हमने तो दुनिया कर बैठा, तलाश थी बेशक हमें, लेकिन अब शेष नहीं। एकतरफा है सवाल मेरा, जवाबे ढुंढे अब कहां। हाथ दिखा कब था, मांग स्वभाव में ही नहीं था। पुछ लेते थोड़े मेरे रण से, विशेष रंज नहीं था।

-


19 APR AT 17:30

शानदार रही लिबास उम्र की,
शान थी उनकी जिन्हें ढलना और गिरना पसंद था,
मैं ना घिरा ना संभला सिर्फ रहा खुद के शील में।
साथ थे-दमदार थे जब हम उनके पास थे,
ना थी रुसवाइयां, ना थी खुमारिया,
हम तो थे धनी जितना मेरे पास कम था।
झोंकें लाजमी थी, हो जो चुकी थी गलतियां,
मैं डटा और जला और जल कर जीवन को जाना।
गौर से खौर सीखा और सिंचा काश के समान,
वो हस्त रेखा को बढ़ना जो था।

-


19 APR AT 11:04

है जमानों से तकल्लुफ हमारी, नाज भी है बेशक से खुद्दारी। इल्जामे है बेहतरीन, ना दीदार कर सके ऐसे शहरे हमारी। गुफ्तगू से गुस्ताखियां हो माफ, ऐसी तालिम हो हमारी। जब रंजिशें से घिरी रजा हमारी, उस रब दी दहलीज सजाए-दोष भी हमारी। शरारतों में गुमनामिया शेष, झलकें जो वो हस्तियां विशेष हमारी। नादानियां घर कर गई, लोगों ने समझा पंख नहीं हमारी।

-


5 APR AT 20:43

If Unexpected and Unwanted things happen, just find the corner and keep insight upon yourself. And ask, Is it you the same as you were before? Who still follow the terms and conditions into the root of life and cry freely and I don't know but ultimately you'll feel fair supremacy within that time.

-


Fetching RAJNISH SOLANKI Quotes