कैसे बताऊं कि क्या हो, तुम
आंखें स्पष्ट नहीं कहती,
कौन सी दवा हो, तुम।
मन मस्तिष्क के बहाव में,
ना जाने कौन सी स्वभाव हो, तुम।
ऐतब से तिरछी नजरें,
जैसे मेरे चशखे के समुद्र में हो, तुम।
मलाल रह जाती अंदर,
जितना भी रूह के पास हो जाओ, तुम।
पलों के ज़ख्म कहा खत्म होती,
वैसे भेदना जो जानती हो, तुम।
ढल रही बीत रही जो,
फुर्सत के बाद निहार सकूं वो हो, तुम।
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