17 MAY 2020 AT 23:05

हे विधाता तूने मजदूर को इतना मजबूर क्यों बनाया
जिसने जहाँ को अपने हाथों से इतना सुंदर बनाया
जिसके बिना तरक्की की कल्पना भी न हो सकती
उस मजदूर को तूने इस कदर असहाय क्यों बनाया
दर दर की ठोकरें खाकर वो यहाँ वहाँ है भटक रहा
उसकी पीड़ा देखकर किसी को रहम नहीं आया
ये कैसा दस्तूर है जो अपने खून पसीने की है खाता
उसके आंखों में देख आंसू किसी को रहम न आया

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