तेरे बिना ये शहर बड़ा सूना सूना लगता है
भीड़ में भी तन्हाइयों का मेला सा लगता है
अब वो खुशबू कहां जो तेरे रहने से आती थी
अब जहाँ भी नजर जाती उजड़ा सा लगता है
मौसम भी अब वैसा खुशगवार नहीं रहा
मौसम का मिजाज भी कुछ बिगड़ा सा लगता है
नदी किनारे के ये पेड़ भी अलसाये से लगते हैं
यहाँ लगे फूलों का चेहरा भी मुरझाया सा लगता है
एक नजर देखने की ख्वाहिश कबसे दिल में है
अब तो इन नजरों को भी सब धुंधला सा लगता है
नींद के इंतजार में अक्सर रात गुजर जाती हैं
ख्वाब में भी तुझसे मिलना मुश्किल सा लगता है
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7 MAR 2020 AT 14:48