पथिक मैं चला अकेला पथ पर
समझ न आता मैं जाऊँ किधर
एक तरफ है कांटों भरी गलियां
दूसरी तरफ है रेत की बस्तियाँ
दूर तक न आता कोई नजर
फिर कौन बताएगा हमें डगर
अनजान पथ पर चलते जाना
नहीं मालूम कहाँ है ठिकाना
कड़ी धूप का होने लगा असर
पसीने से शरीर हो गया तरबतर
जाना कहाँ हर कोई बेखबर
चले जा रहे सब जिंदगी की डगर
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21 MAR 2020 AT 16:21