पिंजरे में बंद पंछी सा फड़फड़ा रहा है मन
दूर गगन में उड़ने को छटपटा रहा है मन
घर की चारदीवारी में अब होने लगी उलझन
बाहर की ताजी हवा के लिए अधीर हो रहा मन
सुगंधित फूलों की बगिया की याद सता रही
मोहक फूलों के दीदार को बेचैन हो रहा मन
नदी तट की बालू पर चलने को आतुरता बढ़ रही
नाव की पतवार थामने को व्याकुल हो रहा मन
नदी का बहता पानी और लहरों से खेलती नाव
देखने की चाहत में बार बार मचल रहा है मन
ऊबने लगा इस बेबसी और लाचारी के दौर से
अब अंधेरे से निकलने को उजाला खोज रहा मन-
21 APR 2020 AT 21:49