मेरा अपना शहर मुझे अब अजनबी सा लगता है
जहाँ कहीं से गुजरो बड़ा सूना सूना सा लगता है
हर कहीं वीरानी और खौफ का मंजर नजर आ रहा
अब तो ये सारा शहर दिन में भी सोया सा लगता है
इक्का दुक्का लोग चेहरा छुपाए भागते दिख जाते
हर इंसान दिल पर बोझ लिए थका थका सा लगता है
कहाँ आ गए हम भीड़ से इन वीरानी बस्तियों में आज
जिंदगी का हर लम्हा मुश्किल से गुजरता लगता है
झील की लहरों में भी अब हलचल नजर आती नहीं
इसके किनारे टहलना भी अब अटपटा सा लगता है
शहर की आबोहवा में जाने कैसा जहर है घुल गया
शहर के जर्रे जर्रे में किसी डर का पहरा लगता है
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27 APR 2021 AT 23:08