जिस डगर से भी गुजरोगे ऐ मेरे मन
पीछा करते मिलेंगे जमाने के गम
जिंदगी की हर एक राह में है उलझन
यहाँ कांटे है ज्यादा और कम हैं सुमन
चोट खाकर कब तक जिएं जाए हम
पंछी की तरह उड़ना चाहे अब ये मन
कर चुके सारी ख्वाहिशें कब से दफन
उजड़ा उजड़ा सा लगता है सारा चमन
जिंदगी की हर एक राह लगती दुर्गम
अब न भाती हमें चंचल सुहानी पवन
खुशियाँ मिलती नहीं न ही कम होते गम
जी चाहे जितना भी कर लो जतन
देख औरों का गम न होती आंखे नम
लोग करते ही जाते सितम पर सितम
टूट कर न बिखर जाए कहीं तन और मन
राज 'कर लो गीत लिखकर हल्का ये मन-
12 MAR 2020 AT 11:29