जिंदगी की कश्ती में जब से सवार हैं हम
हाथों में अपने थामे तभी से पतवार हैं हम
डगमगा रही नाव गम के थपेड़ों से बार बार
खुद को बचाते फिर भी बढ़ते ही जा रहे हम
बीच भंवर में है पहुँची कई बार नाव जीवन की
किसी तरह उससे बचकर बढ़े जा रहे हम
वक्त ले रहा परीक्षा तूफान बन हमारी
हिचकोले खाते फिर भी चलते जा रहे हम
लगता न डर हमें अब आंधी और तूफां से
कई बार मौत से भी टकरा के आ गए हम
उम्मीद है कि एक दिन साहिल पे पहुँच जाएंगे
वक्त के इशारे पर बस बढ़़ते ही जा रहे हम
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7 DEC 2020 AT 16:50