इंसान सोचता कुछ है और हो कुछ जाता है
उसके अरमानों का ऐसे ही कत्ल हो जाता है
बड़ी मुश्किल से संभालता है जब तक खुद को
फिर उसके सामने कोई नया संकट आ जाता है
आशा और निराशा के बीच झूलता है उम्र भर
जो हिम्मत नहीं हारता वह आगे बढ़ता जाता है
बार बार गिरकर संभलना इतना आसान नहीं
जो तूफान से लड़ता है वही इसे जान पाता है
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7 JUN 2020 AT 21:19