इंसान अब इंसान से इस कदर घबराने लगा
एक दूसरे को देख अपना चेहरा छुपाने लगा
जिंदगी अब घर आंगन के करीब सिमट गई
पडो़सी को भी करीब देख दूरियाँ बनाने लगा
उल्लास के पर्व भी अब चुपचाप आकर जाने लगे
खुशहाली का मौसम पास आने से कतराने लगा
मुस्कान अब चेहरों से कदाचित नजर आती है
चेहरा ही जब से परदे के पीछे जगह पाने लगा
कौन खुश है कौन दुखी कैसे पढ़ पाए कोई
जब हर कोई चेहरे को ढंकने माश्क लगाने लगा
नौनिहालों की जिंदगी हो गई उस पंछी की तरह
जो उड़ने के लिए पिंजरे में पंख फड़फडाने लगा
युवाओं की हालत क्या कहें टूटने लगे हैं ख्वाब
ख्यालों में जिंदगी का सुनहरा अवसर जाने लगा
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28 MAR 2021 AT 3:14