हसरतों का बोझ अब हमसे नहीं उठता फिर भी थामे मैं चलता जा रहा हूँ
वक्त बहुत गुजर गया इनको संभाले हुए अब इनके बोझ तले दबता जा रहा हूँ
उम्र भर उठाए इन हसरतों का बोझ सफर में लड़खड़ाता मैं चलता रहा
टूटकर बिखर न जाए कहीं शरीर ये मेरा आहिस्ता आहिस्ता इन्हें दफनाता जा रहा हूँ-
17 MAR 2020 AT 11:43