हर आरजू मुकम्मल हो मुनासिब नहीं होतालोग बेवजह ख्वाहिशों का बोझ लिए फिरते हैं -
हर आरजू मुकम्मल हो मुनासिब नहीं होतालोग बेवजह ख्वाहिशों का बोझ लिए फिरते हैं
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