होते नहीं हैं कम कभी ये गम के सिलसिले
मिलते हैं रोज हमसे जैसे कि कभी नहीं मिले
कोशिश बहुत करता हूँ इनसे बनाने की दूरियां
ये कमबख्त चले आते हैं मुझसे मिलने को गले
मेहमान की तरह आते हैं तो कुछ कहते नही हम
बस इसी तरह संग निभाते चलते हैं सिलसिले
आदत सी हो गई है अब इनके साथ हमें जीने की
गिले शिकवे भूलकर सोचते हैं इनके साथ ही जी ले
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