होता है अहम जिसके अंदर,लगता है छोटा उसे समंदर
हिमालय को समझते हैं ये ठिगना मानो हो ये इनका घुटना
समझते ये खुद को इतना ऊंचा आसमां भी हो जाता नीचा
चांद इन्हें दिखता सरसों का दाना दो आंख वाला लगता काना
बहाते जब ये ज्ञान की गंगा,बड़े से बड़ा ज्ञानी भी समझता खुद को नंगा
बातों में इनकी होते बड़े बोल, बनी न वो तराजू जो सके इन्हें तौल
खाते भले हों ये दाल बाटी चूरमा,खोजे से भी मिलता न इन सा कोई शूरमा
हर अदा इनकी होती औरों से जुदा,चलते हैं जब ये तो नजर आते खुदा
आंखे इनकी देती इस बात की गवाही,अवसर मिले तो कर सकते ये तबाही
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