एक और साल हमसे बिदा ले रहा
जीवन का काफिला थका सा लग रहा
बढ़ रही उम्र नित नए मुकाम की ओर
पीछे मुड़कर देखने का हौसला न रहा
कौन रखे हिसाब गुजरे हुए अतीत का
बीते हुए को सोच कर मन डर रहा
मन में जगी है आस एक नई सुबह की
सुख का सूरज मेघों की ओट में छुप रहा
न जाने कितने अरमां मन में है अधूरे
हसरतों का बोझ उठाना भारी पड़ रहा
अहसास नहीं होता उम्र के गुजरने का
पांवों को थके होने का आभास हो रहा
ये बाजार और कुदरत लुभाती थी कभी
अब तो दिल को कहीं सुकून न मिल रहा
चांद तारे पर्वत सब हैं अपनी जगह कायम
वक्त का कारवां लेकिन बढ़ता ही जा रहा-
12 DEC 2020 AT 16:58