दिल से दिल के तार टूटे बढ़ गई हैं दूरियाँ
जीने के लिए दूर रहना बन गई मजबूरियाँ
कैसा ये दौर आया टूट रही दिलों की आस
मन का पंछी तड़प रहा उड़ने में हैं कठिनाइयाँ
मजबूर है इंसान एक दूसरे पर शक कर रहा
सड़कों पर दूर दूर तक नजर न आ रही परछाइयाँ
हर आदमी सहमकर घर में है दुबका हुआ
धड़कनों के शोर के सिवा हर तरफ है तन्हाईयां
हर तरफ छाया अंधेरा उजाला न दिखता कहीं
कैसे जले दीपक यहाँ चल रही हैं तेज आधियां
हमसे अपने दूर हैं हम जी रहे हैं अकेले यहाँ
मिलने की सबसे आस लिए कट रही तन्हाईयां
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