देखा था कभी शहर पहले वैसा न अब देखा
हर तरफ छाई खामोशी सन्नाटे का मंजर देखा
गली मोहल्ले सड़क सभी वीरान से नजर आए
अनजान भय के साए में घिरे चेहरे देख पाए
इंसानी बस्ती में नीरवता का माहौल नजर आया
सब कुछ थमा हुआ और बेजान सा हमने पाया
मौत के पहरे में जिंदगी सांस लेती नजर आई
जिंदगी की हालत देख मौत जरा न शरमाई
चहकती थी जहाँ खुशियाँ गम के अंधेरे चले आए
रौनक जिन चेहरों पर थी मुरझाए नजर आए
दहशत हर तरफ देखी हर कोई जी रहा डर कर
जिंदगी और मौत के बीच चल रही जंग हर कहीं पर
नौकरी व्यवसाय सब कुछ मिट्टी में मिलता जा रहा
इंसान एक सूक्ष्म वायरस के चंगुल में फंसता जा रहा
कब तक चलेगा दौर ये समझ न कोई पा रहा
घर की चारदीवारी में भी इंसान अब घबरा रहा-
1 AUG 2020 AT 17:45