चाह कर भी कुछ न कर पाता है मन
न जाने कितनी ख्वाहिशें समाई इसमें
ख्वाहिशों के बोझ तले घबराता है मन
चाहते हैं सब ख्वाहिशों को कर दे दफन
पहनाकर इन सबको खूबसूरत कफन
मगर क्या करें मन को ये भी गंवारा नहीं
टूट कर फिर बिखर जाए न कहीं मन
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23 DEC 2019 AT 10:55