बेबस था मैं क्या करता उसकी आँखों को ताकता रहा
दिल को टटोलने की तलाश में चेहरे को भांपता रहा
दिल चाहता था कुछ कहना मगर जुबां खुल न पाई
तो उसके लबों की मुस्कराहट को भलीभाँति आंकता रहा
उसकी अदा ने मुझे अतीत के उस दौर में पहुंचा दिया
जिसके नशे से बचने के लिए मै हमेशा भागता रहा
आज बरसों बाद मुझे लगा फिर उससे सामना हो गया
उसने मुझे पहचाना नहीं यह देख मै हैरान हो ताकता रहा
आज भी हम मुसाफिर की तरह फिर से जुदा हो गए
मिलकर भी कुछ न कह पाए यह गम मुझे सालता रहा
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5 MAR 2020 AT 18:48