आज का युवा है बड़ा लाचार
देखने में वो लगता है बीमार
बढ़ी हुई दाढ़ी बिखरे हुए बाल
चेहरे पर परेशानी पिचके हुए गाल
समझ न सकता कोई उसका हाल
लिए हाथ में डिग्री घूमता बेहाल
दिल में अरमान आंखों में जुनून
न घर में ही चैन न बाहर सुकून
क्या करे कहां जाए रहता परेशान
चाहता है बनाना अपनी पहचान
उठती है जब काबिलियत पर उंगली
लगता है जैसे गिरी हो उस पर बिजली
मुस्कान तो चेहरे पर कदाचित दिखती है
अंदर हो दर्द तो खुशी कहां दिखती है
आंखों में लिए होते हैं हसीन सपने
बिखरते देख ये लगते हैं तड़पने
नशे की ओर फिर बढ़ने लगते कदम
कुंठा और हताशा में घुटता जब दम
भाग्य के भरोसे कुछ लगते हैं जीने
कुछ अपने भाग्य को लगते हैं कोसने
कोई नहीं जो इनकी व्यथा को समझे
इनका हाल पूंछे और इनके आंसू पोंछे
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28 MAR 2020 AT 12:58