आइना
देखता हूँ जब भी आइना खुद को समझा नही पाता हूँ
कितना बदल गया हूँ भरोसा जरा भी नहीं कर पाता हूँ
कहाँ गए वो दिन जब आइना दिल को सुकून देता था
चेहरे पर मुस्कराहट लिए कुछ कहने को जी होता था
आइने के साथ हम देर तक कभी संवाद किया करते थे
सामने खड़े होकर भविष्य के मधुर ख्वाब बुना करते थे
अब तो आइना हमे देखकर सकुचाने सा लगता है
हम चाहते हैं कुछ पूछना तो बताने से भी डरता है
बदले हैं हम या बदला है आइना समझ में नहीं आता
काश वो गुजरा हुआ जमाना फिर से लौट कर आता
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