आदमी कितना मजबूर है एक दूसरे से दूर दूर हैं
कितना असहाय है चाहे तो भी कुछ न कर सकता
एक नन्हे से विषाणु ने उसका जीना दूभर कर दिया
रखे है जमाने भर की दौलत पर कुछ कर नहीं सकता
कैद होकर रह गया अपने घर में आसमां में उड़ने वाला
दहशत में हर पल जी रहा बच कर कहीं जा नहीं सकता
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