तो इस पहर अंजान शहर सुनी सड़के और मेरी खामोशी बैठे हाथ में एक प्याली चाय लिए तेरे इंतजार में कि तू आए और चाय की प्याली अपने होठों से लगा इसकी मिठास बढ़ा जाए !
इस पहर तुझे देखने की तलब का उफान पर होना और तेरे ख्यालों का खुद मन में घर किए जाना और सोच कर तुझे मेरी धड़कन का एकाएक बढ़ते जाना जैसे तुझे पहली मर्तबा देख कर लगा ... क्या फिर से तुझे पहली मर्तबा देख लूं क्या ???