Rajneesh Tripathi   (© रजनीश "अंजन")
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Joined 28 October 2019


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19 HOURS AGO

कहते हो! कि हम रह लेते हैं तेरे बिन, कोई मुश्किल नहीं होती,
खैर तुम कुछ भी कह सकते हो, बड़ा आसान है कहना।

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7 JUL AT 19:55

हर सांस में रटना और ख्यालों में खो जाना।

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7 JUL AT 19:47

कितनी शिद्द्त है उसके लिए मेरे दिल में,
लो बताता हूँ, मैं कैसे मचल जाता हूँ।

वो मुस्कुराती है देखकर कनखियों से मुझको,
'अंजन' कसम से मैं झट से पिघल जाता हूँ।

बड़ी बेखयाली में रहता हूँ बिन उसके,
देख करके मैं उसको, संभल जाता हूँ।

कहीं भी रहूँ बस इक ख़याल उसका ही है,
उसको ख्यालों में पाने निकल जाता हूँ।

छूती है हवा जब जिस्म को उसके,
मैं अंदर से बिल्कुल उबल जाता हूँ।

आईना भी जब उससे मिलाता है निगाहें,
उसकी आँखों में देखता हूँ, और जल जाता हूँ।

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5 JUL AT 23:16

बंधन खोलो, जुलूस रोको और उतारो मुझको,
मेरी जरुरत है उसको मुझे जाना पड़ेगा।

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4 JUL AT 12:36

बंद कमरे में बैठे बस निहारते हो मुझको,
गर ऐसी मोहब्बत है तो क्या ख़ाक मोहब्बत है!!

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4 JUL AT 12:27

वो सोचते रहे कि दुनिया सोचेगी क्या - क्या,
और हम हद से गुज़र गए बस चाहने में उनको!!

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3 JUL AT 20:26

तेरी आगोश में कुछ असर तो अलग है, फ़िर मिलीं ना पनाहें तो क्या इश्क़ है?

चाहते बहुत हो गले लगना मुझसे, फ़िर चुराते निगाहें तो क्या इश्क़ है?

हम मोहब्बत में हैं, मगर दूर भी, फ़िर मिलीं ना जो राहें तो क्या इश्क़ है?

ऐ खूबरू तेरे होते हुए भी, जो सूनी हों बाहें तो क्या इश्क़ है?

जो तलब हो लगी तो मुझे इत्तेला दो, छुपाते हो आहें तो क्या इश्क़ है?

अगर इश्क़ है फ़िर सरेआम हो, 'अंजन' यूँ छुप छुप के चाहें तो इश्क़ है?

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2 JUL AT 19:44

बारिश बताती है कि तू बस आने ही वाला है,
बन करके ख़ुमारी इश्क़ की बस छाने ही वाला है।

आने से पहले, ऐ सावन बता दे जो बात हूँ मैं पूछता,
मोहब्बत के फ़सानों का तू भला सरताज कैसे है?

हैं फागुन, बसंत और सर्दियां भी प्रेम के साथी,
प्रेमिकाओं के दिलों पर फ़िर भी तेरा 'राज' कैसे है?

उसके शहर में है बरसता और यहाँ बूँदें हैं कम,
गुस्ताखी मेरी कह दे, मुझसे बता नाराज़ कैसे है?

कोई खबर कोई ख़त नहीं 'अंजन' का मुझको मिल रहा,
आखिर तबीब और हुजूम, चौखट पे उसकी आज कैसे है?

जोरों पे है चर्चा शहर में, कि वो नाजुक बड़ा नासाज़ है,
ऐ मौसम बता!! मेरा हमदम मेरा माही भला नासाज कैसे है?

मैं हूँ मुस्तरी हर ग़म का उसके, ला बेंच दे मुझको,
ये भी इत्तला करना, मोहब्बत को जताने का मेरा अंदाज़ कैसे है?

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1 JUL AT 16:59

कईयों को ठुकराया था तेरे ही खातिर हमने,
काश कि मेरी तरह तू भी दीवाना होता।

ऐ काश कि तूने मुझे ठीक से पहचाना होता,
मैं तो बस तेरा ही था, इस बात को माना होता।

मेरी आगोश में तू आज भी रहता 'अंजन',
मायूस होकर ना तुझको यूँ जाना होता।

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1 JUL AT 15:13

एक अरसे तक साथ रहा फ़िर थक गया चलते -चलते,
फ़िर एक दिन हौले से, कर लिया मुझसे किनारा उसने।

वो मेरे लिए दरिया सी थी और मैं उसके किनारे जैसा,
पर नाव कागज़ की बना,मुझको खुद में उतारा उसने।

हर बार मैंने, तो उसके हर उबाल को थामे रखा,
लेकिन मैं मिट गया उसमें, दिया ऐसा सहारा उसने।

वो जानती थी उसकी आवाज का असर मुझपे,
मैं जी उठता, फ़िर भी न इक बार पुकारा उसने।

मेरे दिल का लहू ना रिसा, बस एक वार से उसके,
पैना करके खंजर फ़िर आखिरी बार उतारा उसने।

दौर ए जहाँ में उसके माथे का नूर था 'अंजन',
फ़िर इक रोज़, खुरच-खुरचकर सिंदूर उतारा उसने।

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