Rajkumar Sharma   (@राज _creation)
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Joined 5 March 2017


Joined 5 March 2017
7 JUL 2020 AT 22:22

उनको गुरुर है तो होने दो
भगवान थोड़ी है।
ये सब महज प्रशासन है
कोई आजीवन मेहमान थोड़ी है।

आवाज तो उठेगी खिलाफत मे
सबकी मुह मे उनकी जुबान थोड़ी है।
तरफदारी करेंगे मिलीभगत हो जिनकी
की हमारा कोई बिकाऊ ईमान थोड़ी है।

जिनमें रहते है रहनुमा वो सरकारी आशियाने है
किसी के जाती मकान थोड़ी है।
सभी का काम है शामिल यहाँ की तररकी मे
किसी के बाप का संस्थान थोड़ी है।

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26 MAR 2020 AT 19:34

जुल्म किया करते थे खुदा की कारीगरी कुदरत पे
खुद पे आया इंसानियत गुजारिश-ए-रहम करती है।

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23 MAR 2020 AT 14:41

ईश्वर के दरबार मे
मानव ने अर्जी लगाई
मानव जाति पर आखिर
भीषण विपदा क्यों आई।
ईश्वर ने सजीव निर्जीव सभी योनियों को बुलाया।
शिरू हुई सुनवाई।

पहला पक्ष प्रकृति का आया
प्रकृति ने ईश्वर से फरमाया
आपने मुझे सबके लिए बनाया
पर मानव मेरा मूल्य समझ ना पाया
मुझ पर जनसंख्या का बोझ थमाया
स्वार्थ हेतु मुझे अपनाया
मेरा अतिशय दोहन करवाया
फिर मैंने अपना संतुलन गवाया
निर्मल जल वायु का अस्तित्व मिटाया
मानव ने फिर तर्क बढ़ाया

मैंने तो मंदिर मस्जिद गिरिजाघर बनवाया
संसार मे आपको घर दिलवाया।
जनसख्या क्या वंश बढ़ाया।
पोषण हेतु उद्योग लगाया
प्रकृति संरक्षण का मार्ग सुझाया
कमजोरों से पालन भी करवाया
जीवों का वध अत्याचार नही था
जीवित रहने का साधन वही था।
समाज मे असमानता रहती ही हैं
कमजोर पीढ़ियां सहती ही है।
मैंने बस निज का विकास किया है
मुझे ज्ञात नही विनाश किया है।

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12 FEB 2020 AT 21:35

असमर्थ हूं कर्तव्य पथ पर
मे रुक नही मे थमा नही।
बस मार्ग मेरा विचलित है।
यह गाथा सनातन से प्रचलित है।

धैर्य है पूंजी वीरता की
लक्ष्य प्राप्ति हेतु अडिग अमरता की।
गांडीव जैसी लक्ष्य सिथरता की।
कर्मठ नर के कुशलता की।
किन्तु परिचय नहीं असमर्थता की।
इतिहास से प्रचलित व्यथा की।

पथ निज पर शूल सतत है।
साधारण नर भयवित व्यथित है।
वीरों का पर अवसर ये है
उनके पौरुष मे स्वभाव निहित हैं।
पथ निज पर शूल सतत हैं।

मे चला शूल का मूल नसाने
कायर नर को मार्ग दिखाने।
कर्तव्य पथ को फिर सजाने
मृत देह मे पुनः प्राण बसाने।
मे चला शूल का मूल नसाने।

फिर नर को लगा कमजोर नही वह
मृत्युजय को काल से क्या भय?
ये देह तो नित नाशवान है
अमर आत्मा ही परम ज्ञान है।

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16 JAN 2020 AT 23:06

वो 'राज' पूंछते थे मेरी बेफिक्र जिंदगी का!
बस मैंने कभी गम की नुमाईश ना की।

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6 JAN 2020 AT 18:39

एक रोज हमने चेहरे पे हंसी ला दी थी ,
हमको दर्द नही होता है ये चर्चे आम हैं।

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6 JAN 2020 AT 13:31

तमाम रातें गुजारी है मैंने मयखाने मे
पर यूँ तो उम्र लग जायेगी तुमको भूल जाने मे।

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5 JAN 2020 AT 23:12

बेवक्त बेइंतहा मोहब्बत बेबस सी मेरी
वक्त कातिल था और बेरुखी तेरी!

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15 NOV 2019 AT 21:15

मेरी बेरुखी से जमाने को इक़तला कर दिया
मगर वो लहजा-ए-हुस्न से वाकिफ ना थे।

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14 NOV 2019 AT 21:22

फक्त चांद ही चश्मदीद था
इश्क की रिवायतों का...
पर सनम ही अमावस की रात आये।

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