Rajkumar   (Raj verma)
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Bsc student ( national college sirsa)
Joined 14 January 2020


Bsc student ( national college sirsa)
Joined 14 January 2020
16 APR AT 23:13

पागल था मैं जो समुद्र में अपनी कस्ती उतार बैठा ,
हौंसले बुलन्द जरूर थे मेरे ,पर गद्दारों की महफिल में जा बैठा ।
जिसे महफूज रखना चाहा पूरी दुनियां से ।
कमबख्त उसी से अपना कत्ल करा बैठा ।।🥺

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6 APR AT 21:36

उसके झूठ और बहाने इतने अमीर थे ,कि अपने सच से उन्हें खरीद ना पाया ।
हर एक इक्का गुलाम था उसका, मैं बादशाह होके भी कुछ ना कर पाया ।
शब्दों का खंजर कुछ इस तरह उसने मेरे सीने में उतारा ,जख्मी भी हो गया और मर भी ना पाया ।
हर बददुआ कबूल है मुझे उसकी,पर अफसोस उसकी तस्वीर फिर भी ना जला पाया।

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22 JUN 2024 AT 22:24

मुझे नफरत है ऊन लोगों से जो ,
जो बात -बात पर झूठ बोलते है ।।

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19 JUN 2024 AT 23:13

एक माला बनाने में नाकाम रहा मैं , क्योंकि ।
मेरी माला का धागा बिल्कुल कच्चा निकला ।।

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12 DEC 2023 AT 21:11

हर दिन किस्तों में टूटा हूं जनाब, आप कैसे मुझे चंद बातों से जोड़ दोगे ।
जो मरा हुआ हैं पहले ही रूहानी ,उसे कैसे तुम मौत के घाट उतार दोगे ।
अब हर एक के झूठ से वाकिफ हूं मैं ,क्या तुम अब भी मानते हो 🤔 कि झूठ का खंजर मेरे सीने में उतार दोगे ।
अब मैंने भी जज्बातों का कत्ल करना सीख लिया हैं,
चलो छोड़ो भी यार ,तुम कौन कौन से मेरे सवालों का जवाब दोगे।।

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16 MAY 2023 AT 21:04

हम जिन्हें अपना समझते थे वो गैरों की महफिल में जा बैठे,
छुपी-छुपी चालाकियां, बदले- बदले रुस्तम उनके ,
फेस पर झूठ का लेप लगा बैठे ।
झूठे वादे ,झूठी कस्मे रोज चलती थी उनकी(हमारे साथ बात-चीत में)
झूठे वादे ,झूठी कस्मे रोज चलती थी उनकी ,
दो दिन की खुशी के लिए (किसी ओर से बातें)
दो दिन की खुशी के लिए ,
वो अपना सच्चा हमसफर गवा बैठे ।।

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11 MAY 2023 AT 21:37

आंखों से आंसुओं का बहना ,कुछ साबित ना कर पाया ,
पत्ता ऐसे टूटा पेड़ से कि,चाह कर भी वापिस ना जुड़ पाया ।
हम बैठे रहे उसकी याद में समंदर हो कर ,
कमबख्त होंसलो का बवंडर कुछ हासिल ना कर पाया ।।

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13 MAR 2023 AT 10:16


अरमान दबाए जा रहे है मेरे मन की गहराई में ,
जब तक कुछ अरमानों के तार ना जोड़ दूं।
अहसास मेरा कुछ इस तरह बिछड़ रहा मुझसे,
जैसे पतझड़ में पेड़ सारे पत्ते उतार दे ।
विश्वास का पहाड़ टूट चुका है अब ,
सोच रहा हूं टूटे पहाड़ से एक रास्ता निकाल दूं।
अपनों के धोखे उभरने नहीं दे रहे मुझे ,
कर रहा हूं कुछ ऐसा फील ना हो किसी को कुछ इस कदर खुद को मैं मार लूं।।

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8 MAR 2023 AT 17:27

कुछ लफ्ज़ अधूरे रह गए ...,
जब रंग ,बेरंग होने लगे।।

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1 FEB 2023 AT 23:40

याद तेरी यूं ही आती रहेगी
टूटे पत्ते टहनी से ।।

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