पागल था मैं जो समुद्र में अपनी कस्ती उतार बैठा ,
हौंसले बुलन्द जरूर थे मेरे ,पर गद्दारों की महफिल में जा बैठा ।
जिसे महफूज रखना चाहा पूरी दुनियां से ।
कमबख्त उसी से अपना कत्ल करा बैठा ।।🥺-
उसके झूठ और बहाने इतने अमीर थे ,कि अपने सच से उन्हें खरीद ना पाया ।
हर एक इक्का गुलाम था उसका, मैं बादशाह होके भी कुछ ना कर पाया ।
शब्दों का खंजर कुछ इस तरह उसने मेरे सीने में उतारा ,जख्मी भी हो गया और मर भी ना पाया ।
हर बददुआ कबूल है मुझे उसकी,पर अफसोस उसकी तस्वीर फिर भी ना जला पाया।-
एक माला बनाने में नाकाम रहा मैं , क्योंकि ।
मेरी माला का धागा बिल्कुल कच्चा निकला ।।-
हर दिन किस्तों में टूटा हूं जनाब, आप कैसे मुझे चंद बातों से जोड़ दोगे ।
जो मरा हुआ हैं पहले ही रूहानी ,उसे कैसे तुम मौत के घाट उतार दोगे ।
अब हर एक के झूठ से वाकिफ हूं मैं ,क्या तुम अब भी मानते हो 🤔 कि झूठ का खंजर मेरे सीने में उतार दोगे ।
अब मैंने भी जज्बातों का कत्ल करना सीख लिया हैं,
चलो छोड़ो भी यार ,तुम कौन कौन से मेरे सवालों का जवाब दोगे।।-
हम जिन्हें अपना समझते थे वो गैरों की महफिल में जा बैठे,
छुपी-छुपी चालाकियां, बदले- बदले रुस्तम उनके ,
फेस पर झूठ का लेप लगा बैठे ।
झूठे वादे ,झूठी कस्मे रोज चलती थी उनकी(हमारे साथ बात-चीत में)
झूठे वादे ,झूठी कस्मे रोज चलती थी उनकी ,
दो दिन की खुशी के लिए (किसी ओर से बातें)
दो दिन की खुशी के लिए ,
वो अपना सच्चा हमसफर गवा बैठे ।।-
आंखों से आंसुओं का बहना ,कुछ साबित ना कर पाया ,
पत्ता ऐसे टूटा पेड़ से कि,चाह कर भी वापिस ना जुड़ पाया ।
हम बैठे रहे उसकी याद में समंदर हो कर ,
कमबख्त होंसलो का बवंडर कुछ हासिल ना कर पाया ।।
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अरमान दबाए जा रहे है मेरे मन की गहराई में ,
जब तक कुछ अरमानों के तार ना जोड़ दूं।
अहसास मेरा कुछ इस तरह बिछड़ रहा मुझसे,
जैसे पतझड़ में पेड़ सारे पत्ते उतार दे ।
विश्वास का पहाड़ टूट चुका है अब ,
सोच रहा हूं टूटे पहाड़ से एक रास्ता निकाल दूं।
अपनों के धोखे उभरने नहीं दे रहे मुझे ,
कर रहा हूं कुछ ऐसा फील ना हो किसी को कुछ इस कदर खुद को मैं मार लूं।।
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