Rajiv R. Srivastava   (₹ajiv)
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Joined 24 March 2018


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Joined 24 March 2018
25 APR AT 8:28

जड़ से जुड़े हुए थे कल तक, आज जड़ को तोड़ गये;
मानो अपने तन से अपने, मन का मोह माया मोड़ गये।
जहां सजा करती थी महफ़िल, वो ‘घर’ हुआ अकेला;
घर बचाने लिए ही ‘रासि’, घर वाले घर को छोड़ गये॥
✍🏻@raj__sri

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23 APR AT 21:32

हर हंसते हुए चेहरे के पीछे;
हर आदमी सिसकता दिखा।
✍🏻@raj__sri

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23 APR AT 21:25

जले उसके घर भी, एक चिराग़ ‘रासि’;
घर का चिराग़ ख़ुद को जलाने चला॥
✍🏻@raj_sri

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12 APR AT 7:53

छा जाता है आँखों में, वो पुराना मंज़र,
सीने पे चला था, जब प्यारा सा ख़ंजर;
यादें तब सरपट नहीं, शनै शनै सरकती है।
तेरी याद बाद रात, मुश्किल से गुजरती है॥

फिर से वो सुरमई शामें, करती है उद्वेलित,
वो सुनहरी यादें रासि’, करती है आह्लादित;
पीर प्रीत की पल पल पलकों में पलती है।
तेरी याद बाद रात, मुश्किल से गुजरती है॥
✍🏻@raj__sri

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12 APR AT 0:00

आज सी कहाँ थी आज़ादी;
ऐसी मुलाक़ातें होती थी कब।
छुप छुप के बदरी से रासि;
बस चाँद से बातें होती थी तब॥
✍🏻@raj__sri

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11 APR AT 22:05

ना दुनिया की दौलत, पाने का इरादा;
ना चाँद तारे तोड़ लाने का कोई वादा।
इक छोटी ख्वाहिश है ज़िंदगी से रासि;
हम-तुम और इश्क़ इससे ना जियादा॥
✍🏻@raj__sri

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8 APR AT 23:35

तेरे मेरे प्यार की कहानी।
जैसे सूरज औ चाँद की कहानी॥

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8 APR AT 18:21

आसमाँ हैरान है, ये देख कर परेशान है।
आज फ़लक पे चमचमाता कैसा हिंदुस्तान है॥
जिसने झेली है सदियों ग़ुलामी के बेड़ियाँ;
पैरों में थी ज़ंजीरें औ, हाथों में हथकड़ियाँ।
वो ग़ुलाम मुल्क आज दुनिया का अभिमान है।
आज फ़लक पे चमचमाता कैसा हिंदुस्तान है॥

जिसके हर इक साँसों पे परायों का पहरा था;
जिसके अंतरात्मा पे चोट सदियों का गहरा था।
वो सदी का संतप्त सूरज आज उदीयमान है।
आज फ़लक पे चमचमाता कैसा हिंदुस्तान है॥
✍🏻@raj__sri

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7 APR AT 22:50

मैं ख़ुशी ढूँढ रहा उदासी के आईने में;
ताज़गी ढूँढ रहा, उबासी के आईने में।
दिखेगा कहाँ से, उजाले का सूरज;
है अंधेरा छाया अकासी के आईने में॥

✍🏻@raj__sri

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6 APR AT 14:44

जो चढ़नी है सफलता की ऊँची हिमगिरी तो,
और जितनी है अगर ज़माने से जंग आख़िरी तो;
तो सुखमय जीवन को ‘रासि’ शापित करना होगा।
हर पल, पग पग पर ख़ुद को साबित करना होगा॥
✍🏻@raj__sri

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