Rajib Singh   (rajib1603)
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"न कंचित् शाश्वतम्“ ✨🕊️
Joined 17 October 2023


"न कंचित् शाश्वतम्“ ✨🕊️
Joined 17 October 2023
10 HOURS AGO

तुम अब कभी लौटकर नहीं आओगे...?

(read the caption)

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4 JUL AT 0:36

संगम और ज़रूरत..."

(read the caption below)

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3 JUL AT 2:35

जब वो लौटी...पर अजनबी बनकर..."

(read the caption below )

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1 JUL AT 1:22

ख़ामोशी के दरमियान.."

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1 JUL AT 0:53

अब मुझे वापस नहीं लौटना..."

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29 JUN AT 3:54

"मैं अपने ही कमरे में नहीं रहता अब..."

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27 JUN AT 9:30

गुरु: जीवन का प्रकाश

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25 JUN AT 23:18

वो जो लम्हें थे, जीने के थे शायद,
वक़्त ने उन्हें भी बिना इजाज़त छीना है।

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12 JUN AT 0:28

हार का मतलब अंत नहीं होता,
कभी-कभी ये एक विराम होता है -
जिसके बाद लिखी जाती है वो कहानी,
जो सिर्फ मेहनत से नहीं, धैर्य से बनती है।

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7 JUN AT 1:36

कितना अजीब है ये सन्नाटा,
भीड़ में भी कोई पास नहीं।
हर चेहरा एक मुखौटा सा है,
पर पीछे छिपा अहसास नहीं।

कहना तो बहुत कुछ चाहता हूं,
पर लफ़्ज़ मेरे डर से कांपते हैं।
हर बात जो सीने में दबी है,
आंसुओं से खुद को तापते हैं।

कभी मैं सबका सहारा था,
टूटते थे जब, मैं थाम लेता था।
आज जब खुद की साँसें भारी हैं,
कोई नहीं जो एक बार भी कहता— "मैं हूं ना।"

कहीं ऐसा तो नहीं कि
मैं ही खुद से दूर हो गया हूं?
दूसरों की पीड़ा समझते-समझते,
अपने अंदर के शोर को भूल गया हूं?

अब बस चार दीवारें हैं,
और उनमें मेरा मौन बैठा है।
हर दीवार से टकरा कर,
मेरा ही साया मुझसे कुछ कहता है।

चलो, रो लो आज खुल कर,
किसी के काँधे की ज़रूरत नहीं।
तुम्हारे अंदर जो टूट रहा है,
उसे समेटने की हिम्मत भी तुम ही सही।

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