तुम अब कभी लौटकर नहीं आओगे...?
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वो जो लम्हें थे, जीने के थे शायद,
वक़्त ने उन्हें भी बिना इजाज़त छीना है।-
हार का मतलब अंत नहीं होता,
कभी-कभी ये एक विराम होता है -
जिसके बाद लिखी जाती है वो कहानी,
जो सिर्फ मेहनत से नहीं, धैर्य से बनती है।-
कितना अजीब है ये सन्नाटा,
भीड़ में भी कोई पास नहीं।
हर चेहरा एक मुखौटा सा है,
पर पीछे छिपा अहसास नहीं।
कहना तो बहुत कुछ चाहता हूं,
पर लफ़्ज़ मेरे डर से कांपते हैं।
हर बात जो सीने में दबी है,
आंसुओं से खुद को तापते हैं।
कभी मैं सबका सहारा था,
टूटते थे जब, मैं थाम लेता था।
आज जब खुद की साँसें भारी हैं,
कोई नहीं जो एक बार भी कहता— "मैं हूं ना।"
कहीं ऐसा तो नहीं कि
मैं ही खुद से दूर हो गया हूं?
दूसरों की पीड़ा समझते-समझते,
अपने अंदर के शोर को भूल गया हूं?
अब बस चार दीवारें हैं,
और उनमें मेरा मौन बैठा है।
हर दीवार से टकरा कर,
मेरा ही साया मुझसे कुछ कहता है।
चलो, रो लो आज खुल कर,
किसी के काँधे की ज़रूरत नहीं।
तुम्हारे अंदर जो टूट रहा है,
उसे समेटने की हिम्मत भी तुम ही सही।-