Rajesh Nayak   (Dark_sun ☀)
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Joined 17 February 2019


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Joined 17 February 2019
8 MAR AT 18:35

चांद सूरज बादल से अब मैं शिकायत नहीं करता
तेरी आंखों में मैंने वो सारे मौसम देखें हैं
तुम से नाता आजकल का थोड़ी हैं
तेरे साथ खयालों में मैंने कई जनम देखें हैं
तुम्हारी याद आसमान है मेरे शहर का
उससे आते तारे मैने मेरी छत पर देखें हैं
अर्जी इतनी करी है मैंने खुदा से तेरी
मैंने फरिश्तों को मेरे लिए दुआ करते देखे हैं

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3 MAR AT 11:04

तुम बढ़ गए हो आगे और मैं आज भी वही
राह तक रहा पर तेरा मिलना मुमकिन ही नहीं
फिर भी चाहें तो भेज देना तोहफ़ा तेरी आवाज़ का
मैं बस जाऊंगा उसमें बनाके आशियां यहीं

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18 FEB AT 1:52

वो खुश हैं अपने हमसफर के साथ
यहीं सोचकर हम सफ़र काट रहे हैं
कोई शिकवा नहीं कोई शिकायत नहीं
खुद की बात खुदा से बाट रहें हैं

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20 JAN AT 8:48

बातें कर लेता हूं तेरी तस्वीरों से
वक्त बेवक्त का अब खयाल नहीं
तेरे नखरे अदाएं मुस्कान याद करता हूं
तुम ही उत्तर हो मेरी उलझनों का
और कोई मुझे जिंदगी से सवाल नहीं

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23 NOV 2023 AT 19:57

तेरी यादों ने जो हाल किया था
तेरे अलावा कोई खयाल ही न आया
मैं बांध न सका तोड़ दी सब्र की सीमा
दिल कह गया जो उसमें था समाया
बस जो सोचा न था वो मिला
वो पल में मैं एक उम्र गुजार आया
मैंने फरियाद इतनी करी थी रब से
तेरे दिए तोहफ़े से मेरा दिल भर आया
अब कितना सुकून हैं कितना अच्छा लगता है
ये हमेशा रहता पर ये हो न पाया
पर हा में खुश बहुत हूं बड़े अरसे बाद
पर्दे हटे जंजीरे टूटी और तू सामने आया

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22 NOV 2023 AT 4:52

साल बदले बदली हैं सारी राहें
इस दिल में फिर भी हैं तेरी परछाई
ख्वाब में भी रहूं मैं साथ तेरे
तुझे मेरे पास लेके आज तेरी यादें हैं आई

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13 OCT 2023 AT 19:54

आधी रात आधी नींद आधा जगा मैं
आधा प्यार रहा पूरा न हों सका मैं
इस राह में सफ़र ही है मंज़िल नहीं
दर्द ही दर्द हैं दिल मैं घाव न भर सका मैं

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8 OCT 2023 AT 11:07

फूल चुने तुमने हजारों
हम शाख ही में रह गए
बदनाम भी हुए इश्क़ में
बदनामियां भी सह गए
इक वक्त था तुम पास थे
अब याद ही में रह गए
पैशा नहीं मैं लिखूं कुछ
ये सब हम तेरे लिए कह गए

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7 OCT 2023 AT 19:11

चाहूं रहेना तेरे साथ
क्यों इतनी दूर तू हैं
मेरे लिए कहानियों की
परियों जैसी हूर तू हैं
तुजसे जुड़े सारे ख्वाब
मुझे सोने नहीं देते
मेरी आंखों में
बसने वाला नूर तू हैं

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3 OCT 2023 AT 0:43

रात दिन का फर्क है
हश्र फिर भी वहीं हैं
अरमां कई हैं आंखों में
और नींद कहीं नहीं है

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