मजबूरियों से झुलसे हुए कुछ लोग
अमीर लोगों के पैर पकड़ते हैं..!
लेकिन....
मैंने तो बहुतों की पीठें भी खुजलाई हैं..!!-
सुना है,
अपने लोग वहम नहीं पाला करते!
तो फिर मुझे हल्की हवा क्यों लगती है?
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आज वो भी छिन गया, जिसे वर्षों से सम्भाला था!
मैं आज फिर से झूठे दिलासों का शिकार हुआ!!
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जिस से भी मिलता हूँ, सिर्फ कंधे पर हाथ रख
थपथपा जाते हैं..।
सुनो मेरे ''दिखावटी अपने लोगों''..!!
मेरे साथ क्यों नहीं खड़े होते??
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मेरी दौड़ तो देख ली सब ने,
पैरों के छाले भी देख लो, जरा!!
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यहाँ 'अपने' बन जाते हैं पलभर में सब..!
और पता नहीं,
कब वो लोग 'अपनों' से 'बेगाने' भी हो जाते हैं..!!
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क्यों ऐसे उदास होता है, क्यों ऐसे छुपकर रोता है!
तेरा भी बदलेगा मंजर, मुझे तुम पर भरोसा है!!
ये सुख-दुःख आते जाते हैं, जो रोये वो क्या पाते हैं!
आए जो पल अरसों के बाद, मुक्कदर चमका जाते हैं!!
राग जो मीठी-सी गाते, खुद को अपना बताते हैं!
बनती जिनके साथ नहीं, उनको दिल से रुलाते हैं!
उठा ले वो पन्ना जिस पर, तु इतिहास रचने वाला है!
उठ! खड़ा हो मेरे यार, तेरा डंका बजने वाला है!!
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कुछ दुश्मन भी पालिए..... क्योंकि
कोई 'अपना' नहीं, तो मनाओगे किसको?
कोई 'दुश्मन' नहीं, तो जलाओगे किसको??
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करवाया जिसने भयंकर युद्ध, वह घूँट-ए-अमृत' पीना है!
कोई कर दो मुझे गगनवासी, मुझे पँख फैलाकर जीना है!!-