जिसकी लाखों गलतियाँ माफ करी हो!
अगर वो दगाबाजी कर जाए ,
तब इन्सान खुद से हार जाता है......
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तेरी बातें मुझे सहारा देती है जिंदगी जीने के लिए,
वरना! इस दिल को छलनी कर चुके हैं कई।
हाँ.. तुझसे पहले भी लुटाने को तैयार रहता था मैं,
पर किसी कीमत के लायक समझा ही नहीं किसी ने।
कभी सोचता हूँ ऐसा क्या है मुझमें?
जो तुझे दूर कहीं जाने नहीं देता है ।
फिर याद आता है तुझे इस टूटे दिल के टुकड़ों को जोड़ने का सौक है बहुत।
यही वजह है इसे फिर काबिल बनाया है तूने,
एक दफ़े और सर झुकाये खड़ा हूँ
मर्जी तेरी चाहे सर कलम कर दे, चाहे उठा के अपने दामन में समेट ले मुझे ,,,,,,,-
मेरी रातें कुर्बान हैं तेरे लिए ,
क्योंकि इन आंखों से
नींद ले गई हो तुम।
हां! गलती मेरी है
खुद की बर्बादी के लिए
क्योंकि ये दिल मेरी मर्जी से तो
ले गई थी तुम।।
कब तक समेटोगी बिखरे टुकड़ों को
एक करने के लिए,
ख़ैर! अब छोड़ भी दो,
उस दिल को अपने हाल पर तुम ।-
तुमने मेरे दिल के उस कोने को चोट पंहुचाई है,
जहां मैं अकसर आंसुओं को छुपा लिए रखता हूं।-
रूठने मनाने का दौर कब का खत्म हो गया है,
नादानगी का वो एक तरफा इश्क
भी अब खत्म हो गया है।
अरसे बीत चुके हैं यूं जी कर
खैर मेरा अपने लिए जीना तो कब का खत्म हो गयाहै।-
ये सिलसिला
कब से चला आ रहा है,
जिन्दगी की इन सीड़ियों पर
कल कुछ अच्छा कर ही लेंगे,
अफसोस!
हर रोज शामें मायूसी भरी गुजर जाती हैं।-
तेरे इश्क़ की यादें नमीं बन ताउम्र सींचती रहेगी मुझे।
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किसी अनचाहे से स्पर्श को कैसे मिटाया जा सकता है,
कुछ नजरों का देखना जाने कैसे भुलाया जा सकता है।-
एक शहर बसता है दिल में मेरे
जिसकी इमारतें सुनी पड़ीं हैं,
जैसे कोई छोटा सा गांव हो।
एक घर उसमें मेरा है
जिसके हर कमरे में
अंधेरा छाया है
एक कमरे में यादें मायूस बैठी हैं,
जैसे बीते समय में
हर बार मैंने ही गलतीयां की हो।
रोज की उसकी लड़ाईयाँ
अब कुछ ज्यादा खलने लगी हैं,
जैसे फिर लड़ने को जी चाह रहा हो।
सपनें अब करवटें ले रहे हैं,
जैसे वे भी थक गए हो ।
प्रेम की खंडहरों में
बस अब रातों का शोर है।
शहर के किनारे शमशान है
जहाँ हर रोज कोई जलता है,
जैसे रोज वहां मेरा ही शव जाता हो।-