Rajesh Asthana Anant   (राजेश अनंत)
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Joined 24 December 2016


Joined 24 December 2016
31 MAY 2020 AT 10:26

समय बदल गया हम भी बदल गए
कहावतें बदल गयीं, काम करने के
संदर्भ बदल गए हैं....
पहले कहावत थी कि
नेकी कर दरिया में डाल
अब कहावत है
नेकी कर न कर लेकिन मीडिया में डाल

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31 MAY 2020 AT 10:10


बेवफ़ाई भी कभी कभी जरूरी है

वरना लोग कद्र करना भूल जाते हैं...

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31 MAY 2020 AT 9:44

जो कह न पाते हैं जुबान से
उसे कागज पर उकेर देते हैं
किसी ख्याल को क्यूँ यूँही
जाया किया जाय...

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31 MAY 2020 AT 9:23

जवाब आने का सिलसिला खत्म हुआ
जवाब देने की जिम्मेदारियां भी न रहीं
अब तो ख़ामोशियां ही लुभाने लगी हैं...

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31 MAY 2020 AT 9:07

बहुत सी कमियाँ हैं मुझ में
उसमें एक खास है..
मुझे लोगों की आदत लग जाती है..

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29 MAY 2020 AT 20:50

भागते-भागते यह समझ में आया,कि अकेलापन भी एक मंज़िल है, जो एक दिन सबको हासिल होनी है...

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28 MAY 2020 AT 18:00

कि रात गुजर गई
---- राजेश अस्थाना"अनंत"

कुछ तुम्हारे गिले थे
कुछ हमारे गिले थे
कहना शुरू ही हुआ
कि रात गुजर गई

दुनिया में दूर थे
ख्वाबों में एक थे
घड़ी मिलन की आई
कि रात गुजर गई

वफ़ा की कहानी
शुरु ही हुई थी
शबाब पर आती
कि रात गुजर गई

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28 MAY 2020 AT 17:50

ऐसा मान भी किस काम का
जो दूसरों के अपमान से बढ़ता हो........

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28 MAY 2020 AT 17:46

​तुम्हारी बात ख़ामोशी से मान लेना.....​

​यह भी अन्दाज़ है मेरी नाराज़गी का.....​

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28 MAY 2020 AT 17:44

हम संबंधों में भी मशीनी प्रतिक्रिया की अपेछा रखते हैं इस लिए आम तौर से निराशा हाथ लगती है । आदमी कोई पंखा तो है नहीं कि बटन दबाया और चालू हो गया , यह जरूरी नहीं कि हमारी हर मुस्कान के जवाब में मुस्कान ही मिले, हालाँकि अपेछा यही रहती है ।

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