RAJEEV RANJAN   (राjeev रंjan)
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लिखने की कोशिश 🖋️
Joined 17 May 2020


लिखने की कोशिश 🖋️
Joined 17 May 2020
25 APR AT 22:45

अपनों की छोटी बड़ी गलतियों को
भूलना अच्छा होता है
वर्तमान की खुशी के लिए अतीत को
भूलना अच्छा होता है
अपनों को मुस्कुराते देख
ग़मों को भूलना अच्छा होता है
बड़े सपने के लिए
मन की ख्वाहिशों को कुचलना होता है
लक्ष्य हासिल करने के लिए
सतत् प्रयास में लगे रहना होता है
कुछ अच्छे के लिए
भूलना भी अच्छा होता है।

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24 APR AT 15:37

अपने मत का रखना मान
स्वच्छ नेता निष्पक्ष चुनाए
देश को विकास की ओर ले जाए
आज की चूक 5साल खलेगी
वोट के लिए यदि जमीर बिकेगी
कार्य, कौशल, शिक्षा, बेरोज़गारी
इन पर है विचार की बारी
भावी पीढ़ी दर दर न भटके
रोज़गार मिले सबको पढ़के
वोट करें सब अबकी बार
भारत का हर घर रहे खुशहाल
लोकतंत्र का है गुहार
अपने मत का रखना मान।

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22 APR AT 21:23

संकटमोचन हनुमान हमारे
श्री राम 🚩 के प्यारे दुलारे
अंजनी पुत्र यही कहलाएं
लक्ष्मण के यही प्राण बचाए
दुर्लभ बुटी यही ले आए
लाह की तरह लंका दहकाए
सुरसा को बुद्धिमत्ता दिखलाएं
समुद्र में आगे का मार्ग बनाएं
वायु पुत्र यही कहलाएं
स्वयं को श्री राम 🚩का परमार्थ बनाएं
बजरंगी हनुमान हमारे
श्री राम 🚩 के प्यारे दुलारे।

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22 APR AT 14:10

हालात को लिखने चले थे
थोड़ा लिखा कुछ बाकी है
स्याही में ख़्वाहिश सजी
पन्नों पर उभर कर आई है
अंतर्मन की बात लिखी
एहसास लिखे जज़्बात लिखे
अपनी पीड़ा भूल कर हमनें
दुनिया के निर्मम हालात लिखे
आंखों देखा हाल लिखा
नन्हें मुन्ने हाथों में जब
कलम की जगह नशीले पदार्थ दिखा
बचपन में बर्बाद हो रही
जवानी का किरदार लिखा
कहां थे बैठे ओहदे वाले
आज जगह जगह ऐसा हालात दिखा
बदल रही है जीवन शैली
टेक्नोलॉजी का जय-जयकार दिखा
कौन जिम्मेदार है इसका
क्यूं बचपन का विकास रूका।

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20 APR AT 22:07

नए दौर के इंसान
बदल रहे अपनी पहचान

ग्रामीण परिवेश भूल गए
शहरों में बना रहे मकान

खेत खलिहान सब छोड़ रहे
गांव से नाता तोड़ रहे

शहरी भाषा को देते मान
गांव बना अब बेहद अनजान

नए दौर के इंसान
बदल रहे अपनी पहचान

रोटी दाल को धिक्कार दिए
बर्गर पिज्जा को मान दिए

देसी लिट्टी चोखा फिर भी
शहरों में बढा रही है शान

नए दौर के इंसान
खो रहे अपनी देसी शान।

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19 APR AT 12:09

जिन्दगी का सफर मुश्किल नहीं
तूं कदम बढ़ा कर चल

वीर बनों बुजदिल नहीं
तूं कदम बढ़ा कर चल

मार्ग में बाधाएं आएंगी
तुम्हें अक्सर डराएंगी
बुलंद होकर लक्ष्य की ओर
तूं कदम बढ़ा कर चल

लेना नहीं विराम है
यह जीवन एक संग्राम है

अकेला चल तूं निर्भिक बन
तूं कदम बढ़ा कर चल

पीछे नहीं कोई साथ में
क्या रखा है इस बात में

संघर्ष पथ पर आगे बढ़ें
अपने लक्ष्य के सम्मान में

जिन्दगी का सफर मुश्किल नहीं
तूं कदम बढ़ा कर चल।





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19 APR AT 5:54

ज़ख्म सहना पड़ता है
जमाने भर के तानों में
घूंट घूंट कर जीना पड़ता है
टूट कर बिखरने से पहले
खुद से संभालना होता है
प्रेम को संभालने के लिए
दर्द में भी मुस्कुराना होता है।

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15 APR AT 15:06

ज़मीं पे कहीं ‌नहीं मिलता
अब आशियाना पहले जैसा

एहसान बताते हैं अब लोग
जब कोई रोटी थमा देता

मतलब साध छोड़े जाते हैं
शाख से टूटे पत्ते जैसा

मतलबी इस दुनिया में
कुछ भी नहीं अब पहले जैसा

प्यार दोस्त और रिश्ते नाते
सबसे ऊपर हो गया पैसा

ज़मीं पे कहीं ‌नहीं मिलता
अब आशियाना पहले जैसा।








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13 APR AT 20:52

१३ अप्रेल को भूल गए या
जालियांवाला बाग याद है
जनरल डायर की निरंकुशता का
भारतीयों पर व्यवहार याद है
याद है वो वैसाखी
निहत्थों पर हुई आघात याद है
खूनों से लतपथ कुएं (शहीदी कुआं) में
तड़पती हुई मासूमों की जान याद है
१६५० राउंड की गोलियों की
निर्ममता से प्रहार याद है
१३ अप्रैल को भूल गए या
जालियांवाला बाग याद है।

(शहीदों को भावभीनी श्रद्धांजलि 🙏)

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12 APR AT 22:30

स्वयं स्वर्ण बन जाऊंगा
संघर्ष की ताप में तपकर

चोट मन में दबा लूंगा
आंसू आंखों में सूखाकर

मंजिल हासिल कर लाऊंगा
कठिन राह में चलकर

दुश्मन हार भी मानेंगे
लौटकर वापस न आएंगे

खुद को प्रखर बनाऊंगा
बदलते हालात से लड़कर

कुछ करके दिखाऊंगा
स्वयं को मुकाम तक पहुंचाकर

स्वयं स्वर्ण बन जाऊंगा
संघर्ष की ताप में तपकर।






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