ये न समझना
बिछड़ गया हूँ
बस तुम जहाँ से
गुज़र चुके
मैं वहीं
ठहर गया हूँ!-
चाँदी सी उजली मुस्कुराहटें
ओजमयी सकारात्मकता की
स्वर्णिम आभा बिखेरती रहें
इन्द्रधनुषी ख़ूबसूरत ख़्यालों को
गुलाबी लफ़्ज़ों में पिरोती रहें
स्याह वक़्त को भी यूँ ही
हिम्मत की सफ़ेद रोशनी में
शिकन से ऐड़ी तलक भिंगोती रहें
लम्हों के हरे भरे लॉन पर
ताउम्र ओस की बूँदों सी
कभी आईना कभी धनक बनकर
हर गुंज़ाइशें आज़माती रहें।-
अब जबकि कथित सभ्यताएँ दाँव पर लगी हैं
खोखले दिखावों की ज़मीनें भी खिसक चुकी हैं
शांत गुमसुम अधमरा सा था दरिया कल तलक
आज तलातुम की हलचलें फिर जग चुकी हैं
इस सिम्त बेदर्दी थी उस सिम्त बेबसी थी जी रही
आज देख लो गिरेबाँ में अपने, सूरतें बदल चुकी हैं
हालात सुधरेंगे बेशक़ कल को, मगर विचार करना
बुलन्दी मापने में जड़ें न छूटें,अब हदें सिमट चुकी हैं!
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दिखाई पड़ना रूबरू
इश्क़ की शर्त नहीं
ख़ुश्बू की तरह इश्क़
मौजूँ है हर वक़्त ही!-
मैं तलाशने निकला था ज़न्नत का पता
एक "ख़ुश-परिवार" की दहलीज़ पर जा ठहरा
मैं आरज़ू में था ख़ुदायी नेमत की
मेरी झोली में "परिवार की ख़ुशी" आ मिली!-
वफ़ा जो ढूंढने निकले
रुसवाई ही हासिल हुआ
जैसे ख़्वाब सितारों से गिर
ख़ाक में शामिल हुआ
रिश्ते चमकते थे नूर बनकर
ज़िंदगी की राह में
ज़र्द धब्बा बन गया
जब अभिमान दाख़िल हुआ
दिल को मेरे अज़ीज था
वो हर हद से भी परे
जो प्यार लुटाते नहीं थका
आज मेरा क़ातिल हुआ!
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मास्क यूँ मत पहनना तुम कि पूरी शक़्ल ढँक जाए
तुम्हारे ग़फ़लत में किसी और संग न हम बहक जाए!-
एक वक्त का है ये क़िस्सा खासमखास
महफ़िल थी सजी पर माहौल था उदास
तभी दाख़िल हुआ एक अजनबी महफ़िल में
होठों पर मुस्कुराहटें लफ़्ज़ों में लिए उल्लास
मौसम बदल डाला उसने बात की बात में
बरसने लगीं गुज़ारिशें मानो भर-भर आकाश
दबी ख़्वाहिशें कहो या कहो कोरी अभिलाषाएं
धड़कनों की बंज़र ज़मीं पर बिछने लगी घास
ज़ज़्बातों का सैलाब बह चला फिर एकबारगी
सूखते हलक तर गए, बुझ गयी हरेक प्यास!-
तो भी क़िस्सा तो एक ही रहेगा
तमाम वायदों के ख़िलाफ़ जाकर
इश्क़ हमारा घुटने टेक ही देगा!-