Rajeev Mishra   (Samandar speaks)
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rajeevayan84@gmail.com
Joined 19 April 2018


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31 DEC 2023 AT 11:16

एक भयंकर सन्नाटे में लिपटीं अंधेरों के बाद
अपने हुनर में बावली मकड़ियों ने एक जाल बुना हैं
अपने दड़बे में शिकार की तलाश का राह चुना है
हुनर ऐसा के जिसपे आंखे ठहर जाएं
हुनर ऐसा के जिसपे दिल आ जाए
हुनर ऐसा के मनोमस्तिष्क तमाशबीन हो जाए
हुनर ऐसा के सब कुछ बस शून्य शून्य नजर आए
उसे इंतजार है तो इस जाल से निवालो को पाने की
खुद की भूख में पतंगों को भींच कर खाने की
अली को पुकारने की,रागिनी को दुलारने की
मधुकर को रिझाने की, पतंगे को संवारने की
और सुबह अली,मधुकर,भ्रमर सब विलीन शून्यमयी अठाहास में,
सोचता अवाक , सूत्रधार लटका खुदी संताप में
क्यूं कर के मैं उलझ गया,खुदी कि कीर्ति के दुषकार्य में
सोचता, उलझा रहा खुदी कि जाल के दुश्चाल में
सर्दियां अब गर्मी लायेंगी जनवरी कि ठिठुरती रात में
वसंत राज मुस्कुराएगा झींगुर कि झनकती रात में

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28 DEC 2023 AT 13:48

निगेहबानी तेरी मुझको, मिले एक पल तो क्या गम हो
नजर में जो रहे तेरी , मिले गम भी तो क्या गम हो
निगेहबानी.......

यहीं एक बात ही अक्सर उमड़ती है खयालों में
यहीं कहता है दिल अक्सर उलझते उन सवालों से
जो रहता हो फकीरों सा उसे दौलत से क्या हम हो
निगेहबानी.......।।

जरा सी आंख लगते हीं तसव्वुर दिख जाता है
बिनाई में ना हो पानी तो इसां बिक जाता है
गमों से तिश्नगी जिसकी, उसकि आंखे नम क्या हो
निगेहबानी तेरी मुझको, मिले एक पल तो क्या गम हो
राजीव

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15 DEC 2023 AT 19:29

मुद्दतों बाद उम्मीदों की बारात चली है
लेके दामन पे जिम्मेदारियां तमाम चली है

ठिठुरन है फिजाओ में,लाचारागी हवाओं में
सर्द रिश्तों पे वफादारियां बेशुमार चली हैं

फुटपाथों पे रौनक हैं हवालियो में सन्नाटे हैं
उसकी अकड़न मिटाती जज़्बात चली है

ये ठंड, ये चाय,ये बारिशों की आहट
मेरी खिड़की पे सिमटी ये रात चली है

हम गरीबों को मिलती फुटपाथों कि चादर
तीरी अमीरी में सर्दी क्या खाक चली है
राजीव

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28 OCT 2023 AT 15:26

कोई गवाह कोई सुबूत कोई दलील नही मिलती
भंवर कि लहरवारी में कोई मंजिल नहीं मिलती

उसी कि खूब चलती है जो कहके सुनाता है
गुमसुम सी चिड़िया को कोई बाविल नही मिलती

कभी आंखो में आंखे डाल कर ये बात पूछेंगे
क्यों कांटो के मुहाजिर को कोई तंजीम नही मिलती

किसी की पेशानी पे लिखा क्या है खुदाया ने
ये सोचने से दोस्तो फजा हसीन नही मिलती

कोई गवाह कोई सुबूत कोई दलील नही मिलती
भंवर कि लहरवारी में कोई मंजिल नहीं मिलती
राजीव

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28 OCT 2023 AT 15:17

माना के तुम बड़े हो गए,शायद आसमानों पे खड़े हो गए
शायद हुजूम है आज तुम्हारे चारो ओर करीबियों का
तुमपे जां निशार करने वाले हमदर्दो का
तुम्हारे साथ न जाने कितने लोग खड़े हो गए
हां अब तो तुम बड़े हो गए
मगर क्या वो शख़्स याद हैं तुम्हें
जो खामोश बीना भेद भाव बिना जाति धर्म पंथ देखे
तुम्हे भी ऐसा हीं बनाना चाहता था,तुम्हे बेसाख्ता संवारना चाहता था
उसने तो नही सिखाया न तुम्हे की उसकी जाति क्या थी
उसकी हैसियत क्या थी उसकी पहचान क्या थी
अरे हां उसकी पहचान तो तुम थे ,तुम्हारी मासूमियत तुम्हारा सुनहरा भविष्य उसका सपना था
अब तो तुम्हारे सपने शायद सबके हो गए
हां अब तो तुम बहुत बड़े हो गए
ध्यान से सुनना जरा उसकी जाति गुरु की थी
वो आज भी गुरु है और मरने तक शायद यहीं उसकी जाति रहेगी
पर तुम .....
छोड़ो !उसे तो खुशी है के तुम खड़े हो गए
हां अब तो तुम बड़े हो गए
राजीव

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31 JUL 2023 AT 19:56

कम अकलियत तुम्हे बेवजह तोड़ देगी
कम निगाही तुम्हारी तुम्हें लूट लेगी
सम्भले ना तुम जो बेयकिनी से अपनी
ये दुनिया बियाबां तुम्हें छोड़ देगी

कहकशां इक बना है हुनर से तुम्हारे
बेबस बेसववुर कर ये तुमपे हंसेगी
चलो मानलो तुम कलंदर नहीं हो
ये दुनियां तुम्हे कर रुसवा छोड़ देगी

कितने आए यहां कोई निशां तक नहीं हैं
भला तुम्हें क्यों ये दुनियां सर पे रखेगी
कर चलो कुछ ऐसा, निशां छोड़ जाओ
राहिबाना सफर तक खुदाई कहेगी
राजीव

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12 JUL 2023 AT 10:20

राह ए वफ़ा में सभी को संभल जाना पड़ा
जिंदा लोगो को हर बार मर जाना पड़ा

अक्स से अल्फाज़ तक इनाद दबी रही
ऐसे आलम में सफर से हट जाना पड़ा

उरूज़ में खजालत काबिले कत्ल थी
फिर भी तमाशाई बन के रह जाना पड़ा

जज्ब है की बद ख़्वाब तीरी बद सिरती फना करे
पर बद्र को भी टूटे आईनो से गुजर जाना पड़

भ्रम है कि साजिशों से आशियां उजड़ गए
भंवर को भी साहिलो में उतर जाना पड़ा

राजीव

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4 JUL 2023 AT 17:44

भला समझ पायेगी ये दुनिया उस शख्स की कहानी
जिसने धूप में गला दी उरूज़-ए-सफर जवानी

कतरा कतरा हो गया वो वस्ल ए राहेबां में
फिर बाग के बिना पे कर दी फना ये बागवानी

कुंजे आफियत गवां कर बेकरार सा रहा वो
फिर नजाद ए खुशी में छोड़ दी हर रवानी

अना उसकी भी थी के सारी हसरते समेटे
और जिन्दगी के आगे सारी हसरते मिटा दी

मां जिंदगी के फूल की खुश्बू ए बहार हैं
पर पिता का क्या , जिसने सारी नेमाते बिसार दी
राजीव

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15 JUN 2023 AT 21:32

अबकी लोहे की सलाखों से नाजुक से पर टकरायेगे
ना झुक सके थे जो अब तक इस बार ज़मी पर आयेंगे

जो सूरज से प्रचण्ड बड़ा,निर्मम ,निष्ठुर निष्काम खडा
कुछ जुगनू जज्ब इरादों से तम को उजियार बनाएंगे

है तप्त धरा संतापों के अभिशप्त हवाओं के आगे
एक पल देखो कुछ तिनके फिर बन घास ज़मी पर छायेगे

क्या रोक सका है पर्वत निष्काम नदी की धारा को
एक लहर मचेगी सावन की बन सागर फिर लहराएगे
राजीव..

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5 JUN 2023 AT 12:47

नशातो -वस्ल कि चाह में है कितने तन्हा चेहरे
शब -ए -फिराक से खौफजदा पशेमाना चेहरे

उम्र ने लूट ली है जिनकी बाबे -कुबूल जहां से
सखावतो के इंतजार में हैं जिंदा बन तमाशा चेहरे

ये उम्र नहीं है लड़ने कि फकत कि बेखयाली में
बड़ी आस में लूटते हैं खुदी हो बेगाना चेहरे

कुछ ऐसे भी बागबां है बेनूर आलम में
जो ढूढते सरे राह कुर्बते ठीकाना चेहरे

अब गुजरता नहीं काफिला-ए-फसलें -गुल यहां से
कहीं खो गए बाज़ार में बन अफसाना चेहरे
राजीव

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