एक भयंकर सन्नाटे में लिपटीं अंधेरों के बाद
अपने हुनर में बावली मकड़ियों ने एक जाल बुना हैं
अपने दड़बे में शिकार की तलाश का राह चुना है
हुनर ऐसा के जिसपे आंखे ठहर जाएं
हुनर ऐसा के जिसपे दिल आ जाए
हुनर ऐसा के मनोमस्तिष्क तमाशबीन हो जाए
हुनर ऐसा के सब कुछ बस शून्य शून्य नजर आए
उसे इंतजार है तो इस जाल से निवालो को पाने की
खुद की भूख में पतंगों को भींच कर खाने की
अली को पुकारने की,रागिनी को दुलारने की
मधुकर को रिझाने की, पतंगे को संवारने की
और सुबह अली,मधुकर,भ्रमर सब विलीन शून्यमयी अठाहास में,
सोचता अवाक , सूत्रधार लटका खुदी संताप में
क्यूं कर के मैं उलझ गया,खुदी कि कीर्ति के दुषकार्य में
सोचता, उलझा रहा खुदी कि जाल के दुश्चाल में
सर्दियां अब गर्मी लायेंगी जनवरी कि ठिठुरती रात में
वसंत राज मुस्कुराएगा झींगुर कि झनकती रात में
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