Rajeev Kumar Singh   (Rajeev Kumar Singh "रंजन")
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Joined 25 October 2019


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20 AUG 2023 AT 21:21

होठों पर मुस्कान सजा कर रक्खी थी
आंखों पर भी काला चश्मा पहना था
चेहरे पर भी एक मुखौटा ओढ़ा था
मन को भी समझा कर सामने आया था
इतना रोका...
फिर भी आंसू बोल पड़े

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14 APR 2023 AT 18:08

सुर्ख़ आंखों में नमी
चेहरे पे हल्की सी शिकन
ऐ सनम क्या दर्द है??
तुम तो कभी ऐसे न थे।

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1 MAR 2023 AT 21:57


एक रास्ता भूला हुआ सा
एक ख़त पढ़ा पढ़ा सा
एक सपना बिखरा बिखरा सा
......आओ मिल कर समेटें
वो बिखरा सपना, वो अनपढ़ा ख़त,
वो भूला रास्ता..
और वो जानी पहचानी सी तुम।

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12 OCT 2022 AT 22:52

चाँदनी जैसा पैरहन मेरा

कितना बेदाग़ है कफ़न मेरा

ज़र्रा ज़र्रा हुआ है रौशन अब

खुल के आया है बांकपन मेरा।

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3 DEC 2021 AT 23:25

चार दिन मोहब्बत, उम्र भर "उसकी" कमी
एक लम्हे की हँसी, हर वक़्त आँखों में नमी
एक मीठा सा सपना, ताउम्र डरावने ख़्वाब
चार दिन की खुशियाँ, और ग़म ..बेहिसाब

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11 JUL 2021 AT 23:30

मैं तुम से सुन पाया नहीं,
वो एक ख़्वाब जो
संग तेरे बुन पाया नहीं
अधूरी ख्वाहिशें कुछ
दिल में दब कर रह गईं
सुहाने रास्ते संग
तेरे चल पाया नहीं
चलो अब यूँ करें
फ़िर से नयी शुरुआत हम
बना कर हम-कदम तुमको
चलें अब साथ हम

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28 FEB 2021 AT 23:47

मिरे होठों पे उसका नाम बरसों से नहीं आया
कोई भी ख़त, ख़बर, पैग़ाम अरसों से नहीं आया
मैं शब-भर जाग कर उसको, नहीं अब याद करता हूँ
न अब अपने ख़ुदा से मिन्नतें फ़रियाद करता हूँ
मगर अब तक मिरे भीतर, ख़ला सा है कहीं 'रंजन'
लगा लूँ कहकहे लेकिन, उदासी कम नहीं होती

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8 FEB 2021 AT 23:20

उससे भी मुश्क़िल, चुप रहना
तू दरिया है, मैं कश्ती हूँ
साथ तेरे बस मुझको बहना

मैं सहरा का एक मुसाफ़िर
भटक रहा युग-युग से प्यासा
बनकर मृग-मरीचिका मेरी
मुझे दिलासा देती रहना

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31 JAN 2021 AT 0:06

हम तुम्हें यूँ छोड़ कर
पछताएंगे फिर उम्र भर
... हम को अंदाज़ा नहीं था
दिन सुहाने प्यार के
ना आएंगे फ़िर उम्र भर
... हम को अंदाज़ा नहीं था

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22 JAN 2021 AT 0:05


आधे जिए बस हम,
अरमान थे अंगार से
और ज़िंदगी शबनम

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