Rajbhar Ankit   (अंकित निशंक)
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Income Tax Department
Joined 13 January 2019


Income Tax Department
Joined 13 January 2019
29 OCT 2023 AT 19:57

बाज कैसे कहे आखिर
वो भी इसी आसमान में उड़ता है
हो सकता है रफ़्तार ऊँची हो, मयार ऊँचा हो
लेकिन पँख वैसे ही है जैसे सबके
जिस्म वैसा ही है जैसे सबका
हारे तो किससे कहे? बादशाह भी तो है
कैसे कहे वो विलुप्त हो रहा है
ख़ुद की खुदाई में जमींदोज हो रहा
किससे कहे आखिर.....

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29 OCT 2023 AT 19:37

मुझे पता नहीं,
मगर बताए कौन? जो बताएगा जताएगा भी...

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25 JUN 2023 AT 18:17

गहन सलिल में,कदम क़दम पर उथल पुथल हाेगी नौका,
अगर हुनर हो तभी थामना नाविक तुम पतवार ।
ज्ञान, कर्म का योग जरूरी, धैर्य पताका भी होगी
स्थितप्रज्ञ डटे रहना है, अती तीव्रतर धार....

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15 JUN 2023 AT 10:50

बड़ी चुभती है कानों से लटकती बालियां,
मगर सजतीं तो है....

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26 MAY 2023 AT 13:54

गर कदम न चल सकें तो, मंजिलों की चाह क्यूं हो?
दृढ़ संकल्पित सफर में हर कदम ठहराव क्यूं हो?
हो भला की धूप न हो, पर हमेशा छांव क्यूं हो?
युद्धरत हैं, युद्ध का आभास तो हो,
रक्त उमड़े नेत्रों में,दिग्विजय की प्यास तो हो,
सहमति जब स्वयं की,फिर व्यर्थ का टकराव क्यूं हो?
स्वयं के बुद्धत्व तक की साधना हो
विश्व के कल्याण जैसी भावना हो
फिर सुनिश्चित जीत है, फिर बेरुखी का भाव क्यूं हो?
राह निष्कलंक हो, शाश्वत निशंक हो
फिर कल्पना आवेग में, लक्ष्य से दुराव क्यूं हो?
गर कदम न चल सकें तो, मंजिलों की चाह क्यों हो?

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22 APR 2023 AT 10:19

खुदा के बज्म में, तुम पर फना हम जान करते हैं,
मेरे हमदम दीन ओ सुन्नत से हम तुमको, मुबारक चांद करते है।

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27 MAR 2023 AT 23:25

शमा की चांदनी या फिर कहूं तुमको कमल
या मेरे लफ्जो से लिपटी इक मुकम्मल सी गज़ल,
या तुम्हें लेखनी कह दूं उम्र भर जो साथ हो
या तुम्हें वो बात कह दूं अनकही जो बात हो,
मै तुम्हें श्रद्धा कहूं या शक्ति की आराधना
या किसी मंदिर की शाश्वत नित्य पूजा–अर्चना,
शब्द सीमित,भाव अविरल, भावना निर्मल धवल
मै तुम्हें कहता हूं राधे अपने हृदय का कमल...

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18 MAR 2023 AT 21:55

चंद शब्दों में सिमटकर रह गया है वो
लोग जिसको बा अदब गालिब समझते थे

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14 AUG 2022 AT 16:36

उन्मुक्त, भयमुक्त, हो उद्दंड जिगीशा प्रबल,
घनघोर तम में बिखरती सम सोम की किरणे धवल,
हो आईना सम्मुख खड़ा तस्वीर को करता सरल,
है ठीक ही स्वीकारना यथार्थ संग नयन सजल,
जल पंक जब दुत्कारते तो फूटता है कमल दल,
जब चेतना नव वृक्ष का संकल्प लेकर तड़पती,
तब उपजती हैं निशंक कुछ कोपिले अदभुत नवल।

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25 JUN 2022 AT 17:33

रिमझिम बूंदों का स्पंदन,
छूकर जाता है अंतरमन,
कब कब बरसी थी ये यूंही
कब कब फुहार थी बस बेमन
काले मेघों काआर्तनाद,सब कहता है हर पल हर क्षण
रिमझिम बूंदों का स्पंदन,
छूकर जाता है अंतरमन
आखिरी बार कब प्रेम रिसा था बूंदों से
आख़िरी बार कब तेज हुई थी ये धड़कन
इस बार रुको,जी भर नीहार लो इसको भी
हर बार नहीं रहता है ऐसा ही सावन
रिमझिम बूंदों का स्पंदन,
छूकर जाता है अंतरमन,
पल प्रतिपल बादल सा लहराना सीखो
हर बार नहीं मिलता निशंक, मनु का जीवन।।

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